इस बात में शायद ही किसी को शक हो कि समूचे भारत में अलग-अलग जगहों पर पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत के कारण लोग एक-दूसरे के खिलाफ गलत FIR दर्ज करा देते हैं। इसके पीछे दुश्मनी, निजी दुराग्रह, रंजिश या राजनीतिक-सामाजिक मतभेद जैसे कारण होते हैं।
मुश्किल यह होती है कि एक बार एफआईआर (FIR) दर्ज हो जाने के बाद आपको समूची कानूनी प्रक्रिया का पालन करना ही पड़ता है और मुकदद्मेबाजी में उलझकर रह जाना पड़ता है। मुकदद्मे का रिजल्ट हम सबको पता ही है कि इसमें सालों-साल लग जाते हैं और बेशक बाद में आरोपी बरी हो जाए, किन्तु मुकदद्मे में झेली गयी मुसीबतों का हिसाब देने वाला कोई नहीं होता है।
कई निर्दोष इस बात का रोना रट हैं कि उनको सिर्फ परेशान करने के उद्देश्य से झूठी एफआईआर दर्ज़ कराई गयी है और वह उसे झेलने के लिए मजबूर हैं!
बताते चलें कि किसी भी तरह की गलत प्राथमिकी (FIR) के मामले में आईपीसी की धारा 482 की आप मदद ले सकते हैं। इस धारा के तहत ही गलत एफआईआर (FIR) को चुनौती देकर अपना पक्ष रखा जा सकता है। चुनौती देने के दौरान अगर कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को उचित पाया तो बहुत मुमकिन है कि आपको उससे निजात भी मिल जाये।
धारा 482 में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया की बात करें तो आप किसी वकील की सहायता लेकर उच्च न्यायालय में प्रार्थना-पत्र लगाकर अपील कर सकते हैं। इस अपील के साथ आपको अपनी बेगुनाही के प्रयास में ठोस-प्रमाण भी जोड़ने पड़ते हैं, जिसे देखते ही यह जाहिर हो जाए कि आप वाकई में पूरी तरह निर्दोष हैं। मसलन जहाँ घटना हुई है और उसकी बजाय आप पूरे समय कहीं और मौजूद रहे हों और वहां पूरे समय की सीसीटीवी-रिकॉर्डिंग इसकी गवाही दे रही हो। इसके अतिरिक्त पक्के सबूत के तौर पर कोई इमेज, डॉक्यूमेंट, ऑडियो या वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे प्रमाण भी संलग्न करके अपनी डाली कोर्ट के समक्ष रखने पड़ते हैं।
इसमें गवाह भी बेहद अहम भूमिका निभाते हैं।
यह एक तथ्य है कि कानूनी-प्रक्रिया से लोग-बाग इतने घबरा जाते हैं कि वह उचित प्रक्रिया की जानकारी तक नहीं लेना चाहते और नतीजा यह होता है कि उनको लगातार प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है।
ध्यान रहे, सत्य की विजय हमेशा होती है, किन्तु आपको इस पर खुद यकीन करना पड़ेगा और उसके लिए ज़रूरी प्रक्रिया भी अपनानी पड़ेगी। न्याय आपको खुद ब खुद नहीं मिल जायेगा, बल्कि इसे आपको कानून की मदद से खुद के लिए हासिल करने की प्रक्रिया के तहत आगे बढ़ना पड़ेगा।
खुदा-न-खास्ता अगर किसी क्राइम के जैसे चोरी, मारपीट, लैंड-कंट्रोवर्सी, संपत्ति विवाद या फिर मर्डर से लेकर रेप जैसे किसी भी मामले में आपको साज़िशन गलत फंसाया गया है और आप पूर्णतया निर्दोष हैं तो घबराएं नहीं, बल्कि हाई कोर्ट में अपील करें। कई लोग इसलिए अपील नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें इस बात का भी डर होता है कि अपील करने के बाद उन्हें पुलिस और ज्यादा परेशान करेगी।
आपको बताना चाहेंगे कि हाई कोर्ट में केस चलने की प्रक्रिया के दौरान पुलिस, याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकती है, इसलिए इस सम्बन्ध में आपको परेशान नहीं होना चाहिए। यहाँ तक कि आपके खिलाफ निचली अदालत से वारंट निकलने की स्थिति में भी पुलिस आपको गिरफ्तार नहीं कर सकती है। इस सम्बन्ध में कोर्ट ज़रूरी समझने पर जांच-अधिकारी को आवश्यक निर्देश तक देता है, जिससे आपको किसी भी तरह की समस्या फेस न करनी पड़े।
कुछ और बातें स्पष्ट करें तो धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की अवधारणा माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा कर्नाटक राज्य बनाम मुनीस्वामी मामले (AIR 1977 SC 1489) में स्पष्ट कहा गया है कि धारा 482 केवल 3 सिचुएशन की परिकल्पना करती है। वे सिचुएशन हैं, "संहिता के तहत किसी भी आर्डर को इफेक्टिव करने के लिए, किसी भी न्यायालय की प्रक्रिया का मिसयूज रोकने के लिए एवं और न्याय सुरक्षित करने के लिए"। वास्तव में इसमें उच्च न्यायालय द्वारा स्वयं में निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया जा सकता है। यह भी साफ़ है कि लॉ की यह धारा हाई कोर्ट्स को याद दिलाने के लिए भी है कि वे न केवल कानून की अदालतें हैं, बल्कि वे जस्टिस-कोर्ट भी हैं।"
तो अपील करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए कि माननीय उच्च न्यायालय को यह प्रतीत न हो कि आपके द्वारा अदालत की शक्ति का दुरूपयोग करने की कोशिश की जा रही है।
हालाँकि, इस बात में दो राय नहीं है कि कई-कई केसेज में इस धारा ने लोगों को न्याय दिलाने में मदद की है और यह न्याय की रक्षा में इस धारा 482 का महत्त्व काफी ज्यादा है।
इस सम्बन्ध में अगर आपका कोई वास्तविक अनुभव है तो कमेंट-सेक्शन में अपनी बात अवश्य कहें।
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Web Title: Can an incorrect FIR be cancelled, Section 482 in IPC
मुश्किल यह होती है कि एक बार एफआईआर (FIR) दर्ज हो जाने के बाद आपको समूची कानूनी प्रक्रिया का पालन करना ही पड़ता है और मुकदद्मेबाजी में उलझकर रह जाना पड़ता है। मुकदद्मे का रिजल्ट हम सबको पता ही है कि इसमें सालों-साल लग जाते हैं और बेशक बाद में आरोपी बरी हो जाए, किन्तु मुकदद्मे में झेली गयी मुसीबतों का हिसाब देने वाला कोई नहीं होता है।
Can an incorrect FIR be cancelled (Pic: livelaw) |
कई निर्दोष इस बात का रोना रट हैं कि उनको सिर्फ परेशान करने के उद्देश्य से झूठी एफआईआर दर्ज़ कराई गयी है और वह उसे झेलने के लिए मजबूर हैं!
ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या आप इस प्रकार के गलत एफआईआर (FIR) को चैलेंज कर सकते हैं?
इसका जवाब हाँ में है और निर्दोष होने पर आपको इसमें सम्बंधित राज्य के हाई कोर्ट से राहत मिल सकती है।
बताते चलें कि किसी भी तरह की गलत प्राथमिकी (FIR) के मामले में आईपीसी की धारा 482 की आप मदद ले सकते हैं। इस धारा के तहत ही गलत एफआईआर (FIR) को चुनौती देकर अपना पक्ष रखा जा सकता है। चुनौती देने के दौरान अगर कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को उचित पाया तो बहुत मुमकिन है कि आपको उससे निजात भी मिल जाये।
धारा 482 में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया की बात करें तो आप किसी वकील की सहायता लेकर उच्च न्यायालय में प्रार्थना-पत्र लगाकर अपील कर सकते हैं। इस अपील के साथ आपको अपनी बेगुनाही के प्रयास में ठोस-प्रमाण भी जोड़ने पड़ते हैं, जिसे देखते ही यह जाहिर हो जाए कि आप वाकई में पूरी तरह निर्दोष हैं। मसलन जहाँ घटना हुई है और उसकी बजाय आप पूरे समय कहीं और मौजूद रहे हों और वहां पूरे समय की सीसीटीवी-रिकॉर्डिंग इसकी गवाही दे रही हो। इसके अतिरिक्त पक्के सबूत के तौर पर कोई इमेज, डॉक्यूमेंट, ऑडियो या वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे प्रमाण भी संलग्न करके अपनी डाली कोर्ट के समक्ष रखने पड़ते हैं।
इसमें गवाह भी बेहद अहम भूमिका निभाते हैं।
यह एक तथ्य है कि कानूनी-प्रक्रिया से लोग-बाग इतने घबरा जाते हैं कि वह उचित प्रक्रिया की जानकारी तक नहीं लेना चाहते और नतीजा यह होता है कि उनको लगातार प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है।
ध्यान रहे, सत्य की विजय हमेशा होती है, किन्तु आपको इस पर खुद यकीन करना पड़ेगा और उसके लिए ज़रूरी प्रक्रिया भी अपनानी पड़ेगी। न्याय आपको खुद ब खुद नहीं मिल जायेगा, बल्कि इसे आपको कानून की मदद से खुद के लिए हासिल करने की प्रक्रिया के तहत आगे बढ़ना पड़ेगा।
खुदा-न-खास्ता अगर किसी क्राइम के जैसे चोरी, मारपीट, लैंड-कंट्रोवर्सी, संपत्ति विवाद या फिर मर्डर से लेकर रेप जैसे किसी भी मामले में आपको साज़िशन गलत फंसाया गया है और आप पूर्णतया निर्दोष हैं तो घबराएं नहीं, बल्कि हाई कोर्ट में अपील करें। कई लोग इसलिए अपील नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें इस बात का भी डर होता है कि अपील करने के बाद उन्हें पुलिस और ज्यादा परेशान करेगी।
आपको बताना चाहेंगे कि हाई कोर्ट में केस चलने की प्रक्रिया के दौरान पुलिस, याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकती है, इसलिए इस सम्बन्ध में आपको परेशान नहीं होना चाहिए। यहाँ तक कि आपके खिलाफ निचली अदालत से वारंट निकलने की स्थिति में भी पुलिस आपको गिरफ्तार नहीं कर सकती है। इस सम्बन्ध में कोर्ट ज़रूरी समझने पर जांच-अधिकारी को आवश्यक निर्देश तक देता है, जिससे आपको किसी भी तरह की समस्या फेस न करनी पड़े।
कुछ और बातें स्पष्ट करें तो धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की अवधारणा माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा कर्नाटक राज्य बनाम मुनीस्वामी मामले (AIR 1977 SC 1489) में स्पष्ट कहा गया है कि धारा 482 केवल 3 सिचुएशन की परिकल्पना करती है। वे सिचुएशन हैं, "संहिता के तहत किसी भी आर्डर को इफेक्टिव करने के लिए, किसी भी न्यायालय की प्रक्रिया का मिसयूज रोकने के लिए एवं और न्याय सुरक्षित करने के लिए"। वास्तव में इसमें उच्च न्यायालय द्वारा स्वयं में निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया जा सकता है। यह भी साफ़ है कि लॉ की यह धारा हाई कोर्ट्स को याद दिलाने के लिए भी है कि वे न केवल कानून की अदालतें हैं, बल्कि वे जस्टिस-कोर्ट भी हैं।"
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि धारा 482 के तहत क्षेत्राधिकार विवेकाधीन है, अतः माननीय हाई कोर्ट अपने इस विवेक का यूज करने से किसी केस में इनकार भी कर सकता है।
तो अपील करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए कि माननीय उच्च न्यायालय को यह प्रतीत न हो कि आपके द्वारा अदालत की शक्ति का दुरूपयोग करने की कोशिश की जा रही है।
हालाँकि, इस बात में दो राय नहीं है कि कई-कई केसेज में इस धारा ने लोगों को न्याय दिलाने में मदद की है और यह न्याय की रक्षा में इस धारा 482 का महत्त्व काफी ज्यादा है।
Section 482 in IPC (Pic: Youtube) |
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Web Title: Can an incorrect FIR be cancelled, Section 482 in IPC
2 Comments
Very good
ReplyDeleteMujhe paata hai lo ko phad hai main ne
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