भीख मांगना एक सामाजिक बुराई है, जिसे जड़ से मिटाने के लिए पूर्व में कई तरह के असफल प्रयास हुए। भिक्षावृति में लिप्त इंसान की सामाजिक पहचान खत्म हो जाती है। लोग उसे हिकारत की नजरों से देखते है, मौलिक रूप से उसका सामाजिक बहिष्कार होने लगता है। भीख मांगना जारी रहे और उसे अपराध की श्रेणी से अलग रखा जाए, इसको लेकर मुहिम एक बार फिर जोर पकड़ी है, लेकिन नए तरीके से भीख और अपराध को नए सिरे से परिभाषित किया जा रहा है।
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https://play.google.com/store/apps/details?id=in.articlepediaभीख मांगने को अपराध की श्रेणी से हटाए जाने को लेकर मामला कोर्ट पहुंचा है। बड़ी बात ये है सरकारी पक्ष भी कानून में बदलाव चाहता है। भीख मांगना शुरू से सामाजिक बुराई में गिना गया है और कानून की नजरों में तो अपराध रहा ही है। पर, कानून इस कृत्य को रोकने में कितना सक्रिय रहा है शायद बताने की जरूरत नहीं? देखा जाए कानून तो पहले से निष्क्रिय था। जबरन भिक्षावृत्ति की प्रवृत्ति और मजबूरी के अंतर को न कानून कभी समझ पाया और न ही हुकूमतें? समझने के लिए बात बहुत गहरी है जिसकी विसंगतियां भीख को अपराध मुक्ति करने के बाद भी बरकरार रहेंगी।
बहरहाल, भीग मांगने को अपराध की श्रेणी से अलग करने की मुहिम जो शुरू हुई है उसके मौलिक रूप से दो पहलू हैं। अव्वल, भीख मांगना, दूसरा भीख मंगवाना। अपने से शायद कोई भीख मांगना पसंद करता हो? कुछ आर्थिक और पारिवारिक स्थितियां ऐसा करने पर मजबूर करती हैं। दूसरा पहलू भीख मंगवाना होता है जिसमें एक संगठित गिरोह दशकों से सक्रिय गिरोह है। जिनमें ज्यादातर नौनिहाल और मासूम बच्चों की फौज शामिल हैं। अपराधिक आंकड़ों की माने तो ये वह बच्चे होते हैं जिन्हें जबरन अगवाह किया जाता है और बाद में उनकी याद्दश्त खत्म करके भीख मांगने में लगा दिया जाता है। भिक्षावृति को अपराध से मुक्त करना अच्छी बात है, लेकिन जो इस अपराध को खुलेआम जन्म देते हैं उनका क्या? वह तो साफ बच जाएंगे और उन्हें ताकत मिलेगी।
भिक्षावृत्ति को अपराध से अलग करने को लेकर जो मूवमेंट चला है उसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित याचिका पर केंद्र और राज्यों की सरकार से जवाब मांगकर विस्तार पूछा है कि भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से कैसे अलग किया जाए। तीन हफ्तों में जवाब आएगा। जिन राज्यों से जवाब मांगा गया है उनमें बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब और हरियाणा शामिल हैं। याचिका में बताया गया है इन राज्यों में सबसे ज्यादा भिखारी भीख मांगते हैं। जबकि, साउथ के राज्यों में भिखारियों की संख्या कम है। वहां सरकार की सख्तियां ज्यादा हैं। याचिका की दलील है, भीख मांगने को अपराध बनाने संबंधी धाराएं संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है और उन प्रावधानों के चलते लोगों के पास भीख मांगने के काम को अपराधी मानना भी सरासर अन्याय है। हालांकि इस दलील पर जवाब देने का मतलब बहस लंबी हो जाएगी। लेकिन दलील भविष्य में कितनी व्यवहारिक होगी उसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
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बहरहाल, भिक्षावृति इतना जल्द सुलझने वाला मसला नहीं है। वैसे, सुलझाने के लिए अनेक ऐसे सरल और सहज प्रयास हैं जिन पर विचार किया जा सकता है। निरक्षरता उन्मूलन के लिए एक सशक्त, सुदृढ़ एवं सतत अवलोकनीय तंत्र का विकास किया जाए जिसके माध्यम से रात्रि पाठशाला जैसे प्रभावी कार्यक्रम पुनः आरम्भ कर लोगों को साक्षर किया जाए। निश्चित रूप से ये कार्यक्रम इतने प्रभावी हो सकते है कि बिना किसी अतिरिक्त व्यय-व्यवस्था के सफलतापूर्वक संचालित हो सकते हंै। इसके अलावा वृद्ध व शारीरिक रूप से अक्षम भिखारियों की पहचान करके पुनर्वास की समुचित व्यवस्था की जा सकती है। इसके लिए कला-कौशल कार्यों से युक्त आश्रमों की स्थापना की जाए जहां भिखारी अपनी स्वेच्छा से श्रमदान एवं जीविकोपार्जन का कार्य कर सकें।
वैसे, भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम-1959 में बदलाव से पहले कुछ व्यवहारिक बातों पर गौर जरूर फरमाना होगा। कहीं, ऐसा न हो, भिक्षा को अपराध से मुक्त करने के बाद भीख मांगने वालों की फौज ही खड़ी हो जाए। बदलाव के बाद कानून के दुरूपयोग होने की आशंका इसलिए ज्यादा दिखती हंै, बच्चों की किडनैपिंग में तेजी आ सकती है। क्योंकि भीख मांगने का काम अस्सी फीसदी बच्चे ही करते हैं। सड़कों पर, होटलों के आसपास, गली-मौहल्लों व रेडलाइटस् आदि पर ज्यादातर बच्चे ही देखे जाते हैं। पुलिस समय-समय पर ऐसे गिरोह का पर्दाफाश करती है जो बच्चों के अपहरण में संलिप्त होते हैं। पश्चिम बंगाल, झारखंड़, बिहार, यूपी जैसे राज्यों से बच्चों के अपहरण होने के मामले निश्चित से चिंतित करते हैं। एनसीआरबी के मौजूदा आंकड़े भयभीत करते हैं जिनमें बच्चों के अपहरण के मामलों दूसरों अपराधों से कहीं ज्यादा रजिटर्ड हैं।
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2011 की जनगणना के मुताबिक हिंदुस्तान में भिखारियों की संख्यां 4,13,670 थी, लेकिन सरकारी आंकड़े खुद बताते हैं अब संख्या इससे कहीं ज्यादा हो चुकी है। इस मुद्दे पर एक सुझाव ये भी है कि भिखारियों की समुचित गणना की जाए और उनके पुनर्वास को लेकर जनकल्याणकारी कार्ययोजना संचालित हो। इसके लिए सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास रणनीति बनाने और समाज में व्यापक जन जागरण तथा नागरिकों को शिक्षित करने को लेकर सरकारी स्तर पर जागरूकता फैलाई जाए। गौर करने वाली बात है, अगर भीख को अपराध से अलग कर दिया जाएगा, तो भिक्षावृत्ति तो फिर भी बरकरार रहेगी। क्यों न ऐसा किया जाए, दोनों को एक साथ खत्म करने की योजना बनाई जाए। इसके लिए देशभर के भिखारियों को चिंहित करना होगा और उनको शिक्षा का अधिकार देना होगा।
साथ ही उन्हें सामाजिक और विकास की मुख्य धारा से जोड़ा जाए, उनके मुकम्मल तरीके से पुनर्वास की समुचित व्यवस्था की जाए। ऐसी कारगर योजना पर सामुहिक रूप से सरकार और समाज दोनों को आगे आना होगा और ईमानदारी से मूवमेंट में भागीदारी निभानी होगी। भीख और भिखारी दोनों सामाजिक कलंक हैं। इस समस्या को अपराध से कलंक से ही दूर करने की पहल होनी चाहिए।
- डाॅ. रमेश ठाकुर
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Web Title: Begging and Crime are different, Hindi Article by Ramesh Thakur, Premium Hindi Content on social issues
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