लेखक: मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली
Published on 20 Jun 2021 (Update: 20 Jun 2021, 9:55 PM IST)
पापा,
कहने को एक शब्द
दो अक्षर
पर वही तो हैं
बच्चों की
नींव के पत्थर
छोटे से बड़े
होने के दरमियाँ
उठती हैं दीवारें
फिर नींव
दबती जाती है,
स्थिर हो जाती है
यही स्थिरता तो
जीवन की
'सहजता' है
क्रम चलता है
समय बदलता है, पर परिभाषा नहीं
नींव की स्थिरता नहीं
- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'
(मिथिलेश (Writer Mithilesh) लेखन से पहले IT Consultant हैं. तकनीक के साथ-साथ परिवार - समाज के मुद्दों पर शोध , एक्जीक्यूशन में लगे रहते हैं )
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