हमारा नाम स्नेह और श्रेया है।
हमारे घर की बालकनी में एसी के पंखे के ऊपर एक मैना ने घोंसला बनाना शुरू किया। हमने शुरुआत में 6-7 बार अपनी बालकनी को बार बार साफ़ किया, और चाहा कि वह इसे गंदा न करे, और यहां अपना घोंसला न बनाए, लेकिन वह मैना बहुत ही दृढ निश्चय वाली थी। हमारी लाख कोशिशों के बाद भी उसने हार नहीं मानी, और अपने घोंसले के लिए वह प्रतिदिन पत्ते-तिनके लाती रही।
फिर एक दिन हमारे पापा ने हम दोनों बहनों को समझाया कि वह कुछ नहीं करेगी, शांति से अपना घर बनाएगी, और वहां अपने बच्चों के साथ रहेगी, जब तक उसके बच्चे बड़े नहीं हो जाते और उड़ने नहीं लगते!
जिस तरह हमें इस धरती पर रहने का हक है, उन्हें भी तो है न!
फिर क्या... इस बात के बाद से हमने कभी भी उसके घर को नहीं हटाना चाहा। वह वहीं घर बना के रहने लगी। कुछ समय बाद एक दिन मैना का एक बच्चा हमारे बालकनी के पंखे के ऊपर से न जाने कैसे नीचे गिर गया। हम बहुत डर गए। कहीं उसे कुछ हो न जाए, क्योंकि वह बहुत छोटा था। हम प्रार्थना करने लगे और इंतजार करने लगे कि कब 'मम्मी मैना' अपने 'बेबी मैना' को ऊपर लेकर जाए, क्योंकि वह भी डरा और सहमा हुआ था। लेकिन कुछ घंटे इंतजार करने के बाद और मम्मी मैना की लाख कोशिशों के बाद भी वह अपने बच्चे को ले जाने में सफल नहीं हो पाई।
हमें उसके लिए बहुत बुरा लगा कि वह अपनी मम्मी से दूर है। फिर हमने छोटी मैना के लिए एक रैक में पेपर और साफ़ कपड़ा रख कर उसमें पानी और गेहूं के दाने रखे, और उसे वहीं नीचे रख दिया। हमने उसका एक प्यारा सा नाम भी रख दिया, 'चिंकी'... जिससे हम उसे बुला सकें।
हमने उसका ख्याल रखना शुरू कर दिया। उसे कौए से, पानी से, चोटिली चीज से बचाने लगे। यह देख मम्मी मैना शायद समझ गई कि उसे हमसे कोई खतरा नहीं है, और वह भी उसके रहने के लिए पत्ते - तिनके लाने लगी। उसके लिए वहीं नीचे में घर बनाने लगी। और अब वह वहीं नीचे में ही हमारे बालकनी में रहती है, और मम्मी मैना, भाई - बहन मैना ऊपर।
शुरुआत में चिंकी को रात में बहुत डर लगता था, वह रात भर अकेले बैठी रहती थी, हम कभी कभी उसे देख आते थे रात में... फिर वह ठीक हो गई।
हमें अब उसकी आदत हो गई है। रोज सुबह शाम हमारे कमरे में उसकी चहचआहट की आवाज आती है। हर रोज शाम में चिंकी से मिलने उसके कई परिवार वाले आते हैं। यह सारे दृश्य का लुत्फ हम हमारे कमरे से उठाते हैं, और हमारी मम्मी बालकनी में बैठ के चाय पीते - पीते।
हम खुद को बहुत भाग्यशाली मानते हैं कि हमें यह सब कुछ अपने घर में इतने नजदीक से देखने को मिल रहा है। हम खुद को प्रकृति से बहुत नजदीक महसूस करते हैं, और कभी - कभी हम इसे अपने कैमरे में कैद करने की कोशिश करते हैं।
आप सब से में नम्र निवेदन करती हूं, अगर आप कहीं भी, किसी भी पशु पक्षी को मुश्किल में देखे, तो उसकी मदद जरूर कीजिए।
(स्नेह और श्रेया, दोनों बाल-लेखिकाएं हैं.अगर आपके घर भी कोई बालक लिखना चाहता है, तो उसे प्रोत्साहित करें एवं उसकी फोटो सहित, उसकी रचनायें हमें भेजें : [email protected] पर या Article Pedia Content Portal के संपादक मिथिलेश को व्हाट्सअप भी कर सकते हैं: 99900 89080)
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