- संयुक्त परिवार की एकता, सामूहिक चुनौतियों को बिन सामने आये ही समाप्त करने की क्षमता रखती है.
- व्यक्ति-निर्माण की यह महान संस्था अभी समाप्त नहीं हुई है, और इसका मूल आकर्षण बरकरार है. पर लगता है, इसे नए परिभाषा की ज़रुरत है.
लेखक: मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली
Published on 26 June 2022 (Update: 27 June 2022, 04:00 IST)
जीवन के हर क्षेत्र में, उन्नति के शिखर पर चढ़ते जाना, प्रगति-पथ पर आगे बढ़ना, यश प्राप्त करना ही तो एक मानव का लक्ष्य होता है!
न केवल उसके जीवन-काल में, बल्कि हर व्यक्ति यह भी चाहता है कि उसके जीवन-काल के बाद भी, उसकी पीढ़ियां प्रगति-पथ पर आगे बढ़ती रहें.
हालांकि आधुनिक दुनिया में यह शब्द थोड़े भारी लग सकते हैं, किंतु घुमा-फिरा कर आप देखेंगे, तो हर व्यक्ति कमोबेश इसी के इर्द गिर्द अपना कर्म करता मिलेगा. बेशक उसके रास्ते अलग हों, किन्तु हर व्यक्ति अपने जीवन में इसी हेतु संघर्ष करता है, और अपनी अगली पीढ़ी, अर्थात बच्चों आदि के लिए उन्नति का पथ-प्रशस्त करके इस संसार से विदा लेना चाहता है.
पर क्या वाकई ऐसा हो पाता है? क्या एक व्यक्ति के लिए यह सब कर पाना संभव है?
बहुत सारी बातें हैं, और भारत में जो दो सबसे बड़े महाकाव्य हैं, अर्थात रामायण और महाभारत, उनमें अगर ध्यान से देखें, तो एक व्यक्ति की बजाए एक परिवार की ही कहानी है, बल्कि 'संयुक्त परिवार' की कहानी है. तमाम प्रबंधन-तकनीक और आधुनिकता में लिपटे समय में भी यह दोनों महाकाव्य अपना प्रभाव बनाए हुए हैं. और आज ही नहीं, बल्कि उसमें हजारों हजार सालों से निरंतरता भी रही है. ज़रा सोचिये! कोई कितना भी महान योद्धा क्यों न हो, उसकी अकेले की कोई कहानी है क्या, जो युगों-युगों तक कही सुनी जाती रही हो?
वास्तव में संयुक्त परिवार नामक शब्द भारतीय परिदृश्य के लिए कोई नया नहीं है, किंतु बदलती परिस्थितियों में इसमें विघटन हुआ है, टूटन हुई है, और आधुनिक भौतिकवाद के दबाव में संयुक्त परिवार नामक संस्था चरमरा रही है.
हालाँकि, यह समाप्त नहीं हुई है और इसका मूल आकर्षण बरकरार है. पर लगता है, इसे नए परिभाषा की ज़रुरत है.
जैसा कि कहा गया है परिवर्तन ही संसार का नियम है, और हर परिस्थिति में परिवर्तन आता ही है. आवश्यकता होती है कि उस परिवर्तन को समझा जाए, और उस परिवर्तन के अनुरूप अलग-अलग उपलब्ध मॉडल्स में बदलाव किए जाएं, नए मॉडल्स को इंट्रोड्यूस किया जाए.
गीता में भगवान श्री कष्ण ने कहा है कि आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर नए शरीर में धारण करती है, एक व्यक्ति पुराने वस्त्रों को त्याग कर नया वस्त्र धारण करता है. ठीक उसी प्रकार एक संस्था को भी बदलते समय में नए नियमों को, नई चुनौतियों को समझना आवश्यक होता है. एक व्यक्ति के लिए भी यह जरूरी होता है कि वह बदलाव को समझें, और उस अनुरूप विकास की रणनीति बनाएं. साथ ही उस पर सामूहिक रूप से अमल भी करें.
तो आइए देखते हैं कि संयुक्त परिवार आधुनिक परिदृश्य में कितना उपयोगी है, और इसमें कहां-कहां बदलाव की गुंजाइश है, साथ ही उस बदलाव की सार्थकता कहां तक है...
1. एकता का सर्वकालिक मंत्र (Unity is Strength)
संघे शक्ति कलियुगे!
हम सभी ने बचपन में उस लकड़हारे की कहानी तो सुनी ही होगी, जिसके तीन बेटे आपस में हमेशा ही लड़ाई कर रहे होते हैं. फिर एक दिन वह लकड़ियों के एक गट्ठर को उनके सामने लाकर तोड़ने के लिए कहता है. तीनों इस गट्ठर को नहीं तोड़ पाते हैं. फिर वह लकड़हारा उस गट्ठर को खोलकर लकड़ियों को अलग-अलग कर देता है, और फिर उसे तोड़ने के लिए कहता है. ज़ाहिर है कि एक-एक करके वह समस्त लकड़ियां तोड़ दी जाती हैं.
संदेश बड़ा साफ है, और वह यह है कि संगठन में ही शक्ति है, एकता में ही शक्ति है. और संयुक्त परिवार का यह सबसे बड़ा लाभ है.
संयुक्त परिवार की एकता, सामूहिक चुनौतियों को बिन सामने आये ही समाप्त करने की क्षमता रखती है. कल्पना कीजिये कि आपका कोई शत्रु आप पर हमला करने की फिराक में है, किन्तु उसके कदम यह सोचकर ठिठक से जायेंगे कि आपका परिवार संयुक्त है, और हमला करने का अंततः परिणाम भारी पड़ेगा. तो ऐसे में बहुत उम्मीद होती है कि आपका शत्रु उस विचार को ही त्याग दे! ऐसी कई सिचुएशन की आप वास्तविक तस्वीर सोच सकते हैं.
हालांकि यह तब पता नहीं चलता है, जब व्यक्ति किसी संयुक्त व्यवस्था में होता है, किंतु ज्योंहि वह संयुक्त परिवार या किसी सामूहिक व्यवस्था से बाहर निकलता है, तब उसको चुनौतियां बड़ी ही स्पष्टता से नजर आती हैं. ठीक वैसे ही, जैसे एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में बिमारी नहीं आती है, किन्तु ज्योंहि वह कमजोर होता है, उसको तरह-तरह की बीमारियाँ घेर लेती हैं.
अतः हर एक व्यक्ति के लिए आवश्यक है कि एकता का मंत्र वह आत्मसात कर ले, क्योंकि बिना एकता के वह उस अंगूर की भांति नजर आएगा, जो अपने गुच्छे से बाहर, किसी रेहड़ी पर कोने में पड़ा होता है, और धीरे-धीरे सड़ जाता है. कोई ग्राहक उसे खरीदना नहीं चाहता. अतः गुच्छा मतलब, संयुक्त परिवार!
2. वास्तविक, व्यावहारिक चुनौतियां और आपकी कलम (Note down your practical challenges in Joint Family)
एकता का मंत्र हम सभी जानते ही हैं, और वही पहले पॉइंट में याद दिलाया गया है, पर हकीकत यह है कि आज के अत्यंत भौतिकवादी समय में बहुत से लोग इसे व्यावहारिक नहीं मानेंगे. इसके पीछे ढेर सारी चुनौतियां आती हैं. जैसे- आपसी विवाद, कलह, संपदा-प्रबंधन, नेतृत्व टकराहट आदि कई वास्तविक चुनौतियां, किसी मनुष्य के सामने आ खड़ी होती हैं, और अंततः उसका भरोसा संयुक्त परिवार या संयुक्त व्यवस्था से हट जाता है.
चूंकि लोग आजकल अत्यंत संकुचित हो चले हैं, अतः कई बार वह समझदारी की आड़ लेकर अपनी व्यक्तिगत असफलता का दोष भी किसी और के सर मढ़ देते हैं. ऐसे में एक व्यक्ति समाधान तलाशने की जगह दोषारोपण करने लगता है, और धीरे-धीरे संयुक्त व्यवस्था टूट जाती है.
पर इसका हल क्या है?
अगर आप इस बात को सच में जानते हैं कि एकता आवश्यक है, और वह दीर्घकालिक लाभ प्रदान करने वाली है, तो आपको वास्तविक चुनौतियों को पहचानने का अभ्यास करना चाहिए. बहुत सारी चुनौतियां आपके सामने नजर आएंगी. आपको करना क्या है कि आप एक डायरी पर, या अपने कंप्यूटर के मेल पर - गूगल डॉक में उन समस्याओं को लिस्ट कर लें. आपके सामने वास्तविक रूप से, संयुक्त व्यवस्था में चलने की राह में कौन-कौन सी चुनौतियां हैं?
इसे मौखिक न रखें, लिखें और याद रखें कि जब आप उन समस्याओं को को लिस्ट कर लेते हैं, तो आपके लिए उन चुनौतियों को पहचानना आसान हो जाता है. ध्यान रखिए, दुनिया में किसी भी रास्ते को ढूंढने के लिए, सबसे पहले आपको घर से निकलना होता है. तो अगर आप किसी चुनौती का सामना करना चाहते हैं, किसी समस्या को हल करना चाहते हैं, तो पहले आप उसको पहचानें तो सही!
और वह भी धुंधला धुंधला नहीं, बल्कि लिखित रूप में... क्लियर ढंग से उसे पहचानने का प्रयत्न करें.
ध्यान रखें, चुनौतियाँ और समस्याएं वर्तमान और भविष्य से जुड़ी होती हैं, अतः भूतकाल को रेफेरेंस के तौर पर, सीख के तौर पर अवश्य ध्यान में रखें, किन्तु उसे बोझ न बनाएं. यह कुछ ऐसा ही है कि मुस्लिम शासकों ने मध्यकाल में मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई तो अब 2022 में हम सभी मस्जिदों को तोड़कर मंदिर बनायेंगे.
सीधे तौर पर देखने में इस वाक्य को कोई कुतर्क करने वाला व्यक्ति 'न्याय' बता सकता है, किन्तु सच तो यह है कि यह मूर्खतापूर्ण है, और इसे स्वयं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि 'हर मस्जिद में शिवलिंग नहीं ढूंढना है.' इस पर एक विस्तृत लेख है, जिसे आप पढ़ सकते हैं.
मूल बात यह है कि वर्तमान और भविष्य बेहतर करने पर आपका ध्यान केन्द्रित होना चाहिए, और इसके लिए चुनौतियों एवं समस्याओं को, पूर्वाग्रह से मुक्त होकर लिस्ट करें, अपनी पेन से
यह बेहद पहला स्टेप है, जो आपको संयुक्त परिवार की संयुक्त चुनौतियों का समाधान करने की तरफ आगे बढ़ाएगा.
3. ऑनलाइन संवाद (Regular Online Communication in United Family)
यह तीसरा स्टेप है, जो आपको अन्य हित धारकों के साथ करना है. जो भी आप की वास्तविक चुनौती आती हैं, उन्हें लिख लेने के पश्चात, कुछ चुनौतियां तो अपने आप ही हल होती दिखेंगी, कुछ को आप अपने स्तर पर खुद भी सॉल्व कर सकते हैं. लेकिन कुछ चुनौतियां ऐसी ज़रूर होती हैं, जिनमें दूसरों की इंवॉल्वमेंट होती है.
वह परिवार के अन्य सदस्य हो सकते हैं, जैसे ताऊ-ताई, माता-पिता, चाचा-चाची, भाई-बहन आदि. चुनौतियों के संदर्भ में संवाद करना बेहद आवश्यक है.
पहले के समय में परिवार में नियमित बैठक होती थी. चूंकि एक जगह लोग रहते थे, तो अक्सर संवाद होते ही थे, लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में आज संयुक्त परिवार का कोई एक सदस्य, एक शहर में है, तो कोई दूसरे शहर में. ले-देकर कभी-कभार उनका मिलना होता है, और उस समय या तो सिर्फ फॉर्मेलिटी होती है, या फिर विवादित बातें कुरेदी जाती हैं. ऐसे में दूरी और भी बढ़ जाती है. परंतु अगर आप वास्तव में अपनी चुनौतियों को सॉल्व करना चाहते हैं, तो आपको नियमित संवाद करना होगा.
...और आजकल तो यह बहुत आसान हो गया है. आप साप्ताहिक या मासिक बैठकें कर सकते हैं. अगर आपकी नीयत है कि आप अपने परिवार को आगे लेकर जाएं, एक साथ चुनौतियों का सामना करें, तो आपको नियमित संवाद करने की जरूरत है. इसके लिए ऑनलाइन गूगल मीट, ज़ूम मीटिंग्स जैसे तमाम ऑप्शन उपलब्ध हैं. और इन्हें आप परिवारिक बैठकों के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.
ध्यान दीजिए, जैसे आप अपने ऑफिस में औपचारिक मीटिंग करते हैं, और उसके नोट्स लेते हैं, ठीक उसी प्रकार से आपको अपनी परिवारिक बैठकों को भी प्रोफेशनल ढंग से प्रबंधित करने के बारे में विचार करना होगा.
सभी को ऑनलाइन बैठकों में भी बोलने का अवसर प्रदान करना होगा. ऐसा नहीं कि एक व्यक्ति लेक्चर दें, और बाकी लोग सुनें, बल्कि बाकी लोग भी आधारभूत बातों को फैक्ट्स के साथ कहेंगे, तो उनकी सार्थकता बनी रहेगी, और इसीलिए आवश्यक है कि प्रत्येक सदस्य ऊपर दिए गए, एकता का मंत्र समझें-जानें, और वास्तविक चुनौतियों को नोट कर लें.
फिर क्या होगा कि जनरल बातों से अलग हटकर, आप स्पेसिफिक बातों को कर सकेंगे, सलूशन प्राप्त कर सकेंगे.
और यह एक बार में नहीं होगा, बल्कि इसे निरंतर करने की ज़रुरत है, साप्ताहिक (Weekly), पाक्षिक (Fortnightly), अथवा मासिक (Monthly) ऑनलाइन बैठकें.
पर महत्वपूर्ण यह है कि ऑनलाइन निरंतर संवाद होते रहना चाहिए.
4. सामूहिक नेतृत्व-विकास (Collective Leadership Development in United Family)
यह चौथा, मगर बेहद महत्वपूर्ण स्टेप है संयुक्त परिवार में!
सामान्यतः पहले के समय में एक मालिक होते थे, और बाकी सभी सदस्य उनकी बातों को सुनते थे, और इस प्रकार से परिवार का संचालन होता था, किंतु जैसे-जैसे परिस्थिति बदली है, हर व्यक्ति धीरे-धीरे समझदार हो चला है, बल्कि अत्यधिक समझदार होने का दम भरता है, और इस अत्यधिक समझदारी के क्रम में, परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा, किसी के नेतृत्व को स्वीकार करना बेहद कठिन हो चला है. और बिना नेतृत्व के भला कोई व्यवस्था आगे चले भी तो कैसे चले?
ऐसे में आधुनिक संयुक्त परिवार में इस सोच को बदलने की जरूरत है, और सामूहिक नेतृत्व विकसित करने की जरूरत है.
आखिर देश में अब राजतंत्र समाप्त हो गया है, और लोकतंत्र आ गया है. डेमोक्रेसी में, योग्य व्यक्तियों को बढ़ावा दिया जाना समय की सर्वाधिक महत्वपूर्ण मांग है. जैसे देश में डेमोक्रेटिक व्यवस्था के तहत सामूहिक नेतृत्व चलता है, तो परिवार में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है?
जो जिस फील्ड का विशेषज्ञ हो, प्रोग्रेसिव हो, वह अपने फील्ड के प्रोजेक्ट्स को परिवार में आगे बढ़ा सकता है. जैसे संयुक्त परिवार में अगर घर का कोई सदस्य इन्वेस्टमेंट फर्म, बैंकिंग आदि संस्थानों में कार्य करता है, तो वह घर के कॉमन आर्थिक मुद्दों को देखे. और ऐसा नहीं है कि उससे कोई प्रश्न नहीं करे, बल्कि साप्ताहिक ऑनलाइन मीटिंग में वह अपने सुझाव दे, कोई मुद्दा है, तो उसके आर्थिक पक्ष पर विचार करके अपनी राय दे.
ऐसे ही कोई शिक्षा के क्षेत्र में है, तो वह अपने सुझावों के माध्यम से परिवार के बच्चों को सही दिशा दे सकता है, ट्रांसपेरेंसी से प्रश्नोत्तरी का सामना करते हुए राह निकाल सकता है. इस तरह अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग व्यक्तियों का दखल रहता है, और पारदर्शिता बनी रह सकती है.
तात्पर्य यह है कि परिवार में भी सामूहिक नेतृत्व विकसित करने की जरूरत है. मतलब किसी एक बात पर लोग विचार-विमर्श करें, परिवार के बाकी सदस्य उस पर अपनी राय रखें. इसमें भी तीसरा स्टेप, अर्थात 'ऑनलाइन संवाद' बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बल्कि वही विकल्प भी है. जब सभी मिल बैठकर राय लेते हैं, तो निश्चित रूप से सामूहिक नेतृत्व डिवेलप होता है, और ऐसा भी नहीं है कि किसी एक प्रोजेक्ट में कोई एक व्यक्ति राय दे दे, तो अगले प्रोजेक्ट में भी वही राय दे.
हो सकता है कि अगले प्रोजेक्ट में उसकी बजाय, दूसरे व्यक्ति की राय ज्यादा वास्तविकता के करीब हो, ज्यादा सार्थक हो, ज्यादा परिणामदायक प्रतीत होती हो. किंतु इन सभी विषयों को लेकर सामूहिक नेतृत्व डेवलप करना बेहद जरूरी है, और इसलिए कोर मुद्दों पर, जटिल मुद्दों पर गहराई से निरंतर ऑनलाइन संवाद, निरंतर चर्चा आवश्यक है.
5. व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं पारिवारिक अनुशासन (Personal Independence and United Family Discipiline)
संयुक्त परिवार की व्यवस्था को अगर वर्तमान समय में आप आगे लेकर चलना चाहते हैं, तो इन दोनों विषयों को भी आपको बेहद गहराई से सोचना पड़ेगा.
पहले के संयुक्त परिवारों में एक आदेश के पश्चात बाकी लोग उसका पालन करते थे, किंतु अब लोगों की सोच स्वतंत्र हुई है, बल्कि कई जगह पर स्वच्छंद भी हुई है. ध्यान दीजिए, एक परिवार में व्यक्तिगत स्तर पर तो स्वतंत्रता जरूरी है, किंतु पारिवारिक अनुशासन भी उतना ही जरूरी है.
जैसे कि आप अपने बंद कमरे में कुछ भी खा सकते हैं, किंतु सार्वजनिक स्थान पर जो सभी के लिए उपलब्ध है, वही खाना उचित है. आप बंद कमरे में, अपने फ्लैट में अपने बच्चों को कुछ भी खिला सकते हैं, किंतु जहां सार्वजनिक डाइनिंग टेबल पर बैठने की बात आती है, वहां फिर आपको पारिवारिक अनुशासन में बंधना होता है. यह सिर्फ खाने के संदर्भ में नहीं है, बल्कि बाकी संदर्भ में भी यह बातें उतनी ही तथ्यात्मक है.
चूंकि बिना अनुशासन के कोई भी परिवार, कोई भी संगठन, और इतना ही क्यों, कोई भी व्यक्ति जीवन में न तो आगे बढ़ सकता है, और ना ही स्थाई रूप से मजबूती प्राप्त कर सकता है, इसलिए कहीं ना कहीं अनुशासन तो आपको तय करना पड़ेगा. यह अलग-अलग परिवार के लिए अलग-अलग हो सकता है, जिसे सभी व्यक्ति चर्चा कर सकते हैं, और उसके पालन पर सहमत हो सकते हैं.
बातचीत में सभ्यता लानी पड़ेगी, बड़ों की रिस्पेक्ट करनी पड़ेगी, परिवार के बच्चों को स्नेह देना पड़ेगा. आप सार्वजनिक रूप से इन विषयों पर पारदर्शी एवं अनुशासित व्यवहार करेंगे, तो निश्चित रूप से आपके परिवार की, या यूं कहें कि संयुक्त परिवार की नींव मजबूत होगी. हां यह जरूर ध्यान रखिए कि परिवारिक अनुशासन के नाम पर किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन भी नहीं होना चाहिए, अन्यथा वहां से परिवार के टूटने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
व्यक्तिगत विकास की संभावनाएं अपार होनी चाहिए. ऐसा नहीं होना चाहिए कि 5 लोग मिलकर किसी एक व्यक्ति पर अनुशासन के नाम पर, उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन कर दें. चूंकि यह बड़ा बारीक पॉइंट है, इसलिए इसका जनरल उदाहरण देना थोड़ा कठिन है. संयुक्त परिवार में पहले एक मुखिया के आदेश पर सब लोग सुबह उठ जाया करते थे, किन्तु अब यह मुमकिन है क्या?
पर ध्यान दीजिये, आज भी इसे अगर अनुशासन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खांचे में रखना चाहें तो रख सकते हैं.
जैसे, अन्य दिनों में बेशक परिवार का कोई सदस्य सुबह देर तक सोता हो, किन्तु अगर घर में सुबह कोई पूजा है, तो आपको वहां पारिवारिक अनुशासन को स्वीकार करते हुए पूजा में उपस्थित रहना चाहिए.
ऐसे अलग-अलग सिचुएशन के हिसाब से अगर इतना भी अनुशासन परिवार में नहीं है, तो फिर यकीन मानिये, परिवार की भावनाओं से आप जुड़ नहीं सकेंगे, और अंततः आप एक असामाजिक प्राणी में तब्दील हो जायेंगे.
- संयुक्त परिवार पर ही इस लेख को भी पढ़ें: संयुक्त परिवार का 'नया स्वरुप' - (समाधान परक लेख)
6. योग्यता-विकास एवं अर्थ-प्रबंधन (Competency, Capacity development and Economic Management)
बदले समय में यह विचार बेहद महत्व का है. अकेले व्यक्ति विकास करता है, तो वह येन-केन प्रकारेण अपनी जरूरतें पूरा करता है, किंतु संयुक्त परिवार में पहले कमजोर व्यक्तियों की जवाबदेही भी बाकी लोग लेते थे. इसके मूल में यह बात भी थी कि सभी लोग अपनी कमाई एक जगह पर रखते थे, और एक जगह से वह खर्च होता था, किंतु बदली परिस्थितियों में ऐसा संभव नहीं रहा है?
अब लोग अपनी कमाई अपने पास रखते हैं, और उस अनुरूप स्वयं खर्च भी करते हैं.
वर्तमान परिदृश्य में यह एक सच्चाई है कि व्यक्तिगत विकास पर लोगों का काफी जोर हो गया है. तो इस सच्चाई को क्यों ना हम स्वीकार करें, और अपना व्यक्तिगत या फिर इसको यूं कहा जाए कि परिवार के प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता-विकास को एक पैमाना बना लिया जाए!
ऐसा होना बेहद आवश्यक है, ताकि हर व्यक्ति अपना जीवन यापन स्वयं के बल पर कर सके. वह अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी, अर्थात अपनी बीवी-बच्चों का लालन-पालन स्वयं कर सके.
यूं अब महिलाएं खुद आगे बढ़कर अपनी आर्थिक जिम्मेदारियां संभालने लगी हैं.
ध्यान रहे, हर व्यक्ति का व्यक्तिगत स्तर पर कमोबेश योग्य होना आवश्यक है, ताकि अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को वह स्वयं आगे लेकर जा सके. इसके लिए आवश्यक है कि योग्यता विकास पर शुरू से ही ध्यान दिया जाए.
जहां तक रही सार्वजनिक या परिवारिक जवाबदेही, तो अपनी कमाई का कुछ हिस्सा पारिवारिक जवाबदेही पर, प्रत्येक व्यक्ति को निश्चित ही खर्च करना चाहिए, क्योंकि तभी संयुक्त परिवार की महत्ता बनी रहेगी. कॉमन प्रॉपर्टीज मेंटेन हो सकेगी, प्रतिष्ठा बनी रहेगी. इसके लिए नियम बनाये जाने चाहिए, जो अलग-अलग परिवार के हिसाब से अलग हो सकते हैं.
इस बात को लेकर किसी कन्फ्यूजन की जरूरत नहीं है, क्योंकि अक्सर लोगों का मूल गांवों में होता है, जहां उनके पुरखों की जमीनें होती हैं, या वहां पर सार्वजनिक घर होते हैं, तो उसको मेंटेन करने के लिए, जमीन की रक्षा करने के लिए, पुरानी संपत्ति की देखभाल के लिए आपको पैसे की एवं समय के इन्वेस्टमेंट की जरूरत होती है, और यह इन्वेस्टमेंट आपके संयुक्त परिवार की नींव को मजबूत करता है. शहरों में भी अगर संयुक्त परिवार की कोई कॉमन संपत्ति है, तो वहां भी यह व्यवस्था अपनाना आवश्यक है.
7. कॉमन प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, रिस्क एवं क्रेडिट डिस्ट्रीब्यूशन (Common Project Management, Risk Management and Credit Distribution)
हालांकि सामूहिक नेतृत्व में यह पॉइंट भी कवर हो जाता है, किंतु फिर भी अलग-अलग प्रोजेक्ट लेकर, अलग-अलग व्यक्ति अपनी नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन कर सकते हैं. सामान्य परिवार में एक बड़ी समस्या आती है लोगों में... कि उन्हें उनके किए गए कार्य का क्रेडिट चाहिए. हालांकि समाज इसको अपने आप भी देखता है, और अपने आप निर्णय भी लेता है.
फिर भी, जो व्यक्ति किसी प्रोजेक्ट को आगे लेकर चलना चाहता है, उसे इसका मौका दिया जाना चाहिए, और इससे संबंधित रिस्क उठाये, प्रबंधन करे, क्रेडिट भी अपने अनुसार वह डिस्ट्रीब्यूट कर सकता है.
यह तब पॉसिबल होता है, जब आप सामूहिक नेतृत्व के लिए बेहतरीन संवाद करते हैं, पारिवारिक अनुशासन को समझते हैं, योग्य होते हैं, अर्थोपार्जन में स्वतंत्र होते हैं. आखिर, काम तो वही कर सकता है, जो करने के योग्य हो, और क्रेडिट भी उसी को मिलती है, मिलनी भी चाहिए, जो परफॉर्म करके दिखलाये.
पुरानी संयुक्त परिवार व्यवस्था में कहीं न कहीं अयोग्य सदस्यों का भी तुष्टिकरण किया जाता था, और ऐसे में योग्य व्यक्तियों को उसका उचित सम्मान नहीं मिलता था. जाहिर है कि आधुनिक समय में परिवार के हरेक सदस्य को अलग-अलग स्तर पर मौका मिलना चाहिए, ताकि वह संयुक्त परिवार की चुनौतियों को समझे, समस्यायों को दूर करने हेतु आगे आये और योग्यता के साथ, संयुक्त परिवार की नींव को मजबूत करने पर कार्य करे.
8. बच्चों का विकास एवं वृद्धों का संरक्षण (Child Development and Senior Citizen Wardship)
वृद्ध जहां हमारा इतिहास होते हैं, वह इतिहास, जिनसे हमारे परिवार को संस्कार मिलता है, वहीं बच्चे हमारे परिवार का भविष्य होते हैं. और इन दोनों के बीच की कड़ी हम, अर्थात युवा वर्ग है.
अगर आजकल बच्चों में संस्कार डेवलप करना, संवेदनशीलता डेवलप करना कठिन हो रहा है, तो इसका एकमात्र कारण है, वृद्धों के संरक्षण से हमारा मुंह मोड़ लेना. इस पर हमारी वर्तमान पीढ़ी मौन हो जा रही है, और अब तो कुछ ही सही, मगर लोगों ने भारत में भी वृद्धाश्रम, अर्थात 'ओल्ड एज होम' (Old Age Home) आदि विकल्पों पर ध्यान देना लोगों ने शुरू कर दिया है.
हालांकि भारत फिर भी अभी उस अवस्था में नहीं है. यहाँ लोगों ने अपने परिवार के वृद्धों की सुरक्षा-संरक्षा से पूरी तरह मुंह नहीं मोड़ा है. किंतु फिर भी इन विषयों पर ध्यान देने की जरूरत आन पड़ी है. जैसे-जैसे संयुक्त परिवारों का विघटन हुआ है, वृद्धों का संकट भी उसी अनुपात में बड़ा हुआ है.
और वृद्धों के संकट के साथ-साथ बच्चों में संस्कार का अभाव, संवेदनशीलता का अभाव कहीं अधिक तेजी से बढ़ा है. अतः इन दोनों विषयों को जोड़ना बेहद आवश्यक है.
बेशक आप कई भाई हों, और आप अलग-अलग शहरों में रहते हों, लेकिन क्या ऑनलाइन ऐसा कोई सिस्टम डिवेलप हो सकता है, जहां महीने में एक बार, या दो बार, उपलब्धता के अनुरूप ऑनलाइन मीटिंग हो सकती हो? या फिर गांव की कॉमन जगह पर, महीने में, त्रयमासिक लोग एक साथ मिल सकते हों, और संस्कारों का आदान-प्रदान हो.
यह थोड़ा प्रबंधित करना पड़ेगा, किंतु प्रबंधित करने पर यह विषय धीरे-धीरे व्यावहारिक भी बन जाते हैं, और फिर धीरे-धीरे वह आसान बनते जाते हैं, हमारे जीवन का हिस्सा बन जाते हैं.
ध्यान रखिए, बच्चों में तभी संवेदनशीलता जन्म लेगी, जब उनको शुरू से इन बातों को ध्यान दिलाया जाएगा. बेशक गर्मी की छुट्टियों में ही सही, लेकिन अगर गांव के खेत में, तमाम भाइयों के बच्चे एक साथ दौड़ लगाएंगे, अपने दादा-दादी के साथ खेलेंगे, तो संस्कार निश्चित रूप से मजबूत होगा. इसी प्रकार से वृद्धों के संरक्षण पर भी आपको समय देना पड़ेगा, और अगर आवश्यकता पड़ती है, तो धन का इन्वेस्टमेंट भी करना पड़ेगा.
यूं हमारे यहां के बुजुर्ग, अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव तक मजबूत स्थिति में होते हैं. यहाँ तक कि वह अपने बच्चों को खुद ही देने की अवस्था में होते हैं. बेशक उनके पास पेंशन हो या कुछ भी ना हो, तो भी उनके पास ज्वेलरी से लेकर तमाम ऐसी संपत्ति होती है कि वह खुद दे सकते हैं, तो हमें यह ध्यान देना चाहिए कि उनकी संरक्षा-सुरक्षा में किसी प्रकार की कमी ना हो, और बदलते समय में इसके व्यावहारिक सलूशन ढूंढने चाहिए. इसके लिए आवश्यक हो, तो नव-निर्माण आदि पर भी गौर फरमाना चाहिए.
9. यत्र नार्यस्तु पूज्यंते (The Women Power)
हमारे समाज में, प्राचीन समय से ही औरतों का दर्जा सबसे ऊपर रहा है, लेकिन कहीं ना कहीं समाज में यह सतही तौर पर ही नजर आता है. लोग महिलाओं को सामने नहीं आना देना चाहते हैं, उन्हें नेतृत्व की भूमिका में नहीं देखना चाहते हैं, तो महिलाएं भी अपने आप को उसी कम्फर्ट-ज़ोन में कैद कर लेती हैं.
पहले के समय में तो कुटाई-पिसाई इत्यादि कार्यों में महिलाओं का काफी समय निकल जाता था, किंतु बदली हुई परिस्थिति में एकल परिवार का चलन जहां बढ़ रहा है, वहीं पर्याप्त समय-टेक्नोलॉजी होने के बावजूद महिलाओं का विकास भी कहीं ना कहीं संकुचित-सा हो गया है.
हालाँकि, कई लोग तर्क दे सकते हैं कि महिलाएं नौकरी के लिए बाहर तो निकल रही हैं, किन्तु हकीकत क्या है, इसे ज़रा करीब से देखिये.
वास्तव में, संयुक्त परिवार के विघटन के दौर में एक महिला अगर जॉब करने जाती है, तो वह तब तक तो जॉब आसानी से कर लेती है, जब तक वह माँ बनने हेतु प्लान नहीं करती है, किन्तु ज्योंही वह इस फेज में एंटर करती है, तो फिर उसे भी एक आम गृहिणी बन जाना पड़ता है. कहना आसान है, किन्तु भारतीय परिदृश्य में महिला को लम्बी छुट्टी लेनी पड़ती है, एक तरह से कैरियर-ब्रेक का कई साल का दौर चलता है. कुछ कम बैक भी कर लेती हैं, किन्तु अधिकांश फिर घर-गृहस्थी में ही फँसी रह जाती हैं.
हालाँकि, अगर संयुक्त परिवार की परंपरा को नए स्वरूप में पुनर्जीवित करने का प्रयत्न किया जाए, तो यकीन मानिये, काफी कुछ चीजें बैलेंस हो सकती हैं... न्यायपूर्वक!
न्यायपूर्वक शब्द का प्रयोग ध्यान देने योग्य है, और यह अलग-अलग परिस्थिति में अलग-अलग अर्थ धारण करता है.
बहरहाल, इसके लिए आपको भी कहीं ना कहीं प्रयत्न करना पड़ेगा, और महिलाओं को नेतृत्व की भूमिका में आगे लाना होगा. इसके लिए नई स्किल सीखने से लेकर, लगातार अध्ययन भी महिलाओं को स्वेच्छा से करना होगा.
इंटरनेट एज में वर्क फ्रॉम होम, एंटरप्रेन्योरशिप जैसे शब्दों के मायने, अपने संयुक्त परिवार के सन्दर्भ में तलाशने होंगे, और यही वह रास्ता है, जिससे महिलाओं को आगे बढ़ाने की हमारी प्राचीन परंपरा जीवंत रह सकती है.
ध्यान रखिए, अगर एक पुरुष को आप शिक्षा देते हैं, तो सिर्फ एक व्यक्ति को शिक्षा देते हैं, किंतु अगर एक महिला को आप शिक्षित बनाते हैं, महिला को आगे बढ़ाते हैं, तो उसके साथ संपूर्ण परिवार आगे बढ़ता है. अतः बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, बेटी बढ़ाओ के मंत्र को वास्तविक अर्थ में बरकरार रखकर, महिलाओं के विकास पर आपको खास सजगता बरतनी होगी. इसमें हर स्तर पर संवाद और तत्कालीन- दीर्घकालीन सार्थक विकल्पों पर दृष्टि जमाये रखनी होगी.
10. परिवर्तन (Changing is must)
परिवर्तन संसार का नियम है, और यह बातें सैद्धांतिक रूप से हम सभी जानते हैं, किंतु व्यवहारिक धरातल पर परिवर्तन बेहद कष्टकारी होता है.
वह चाहे कोई आदत हो, चाहे कोई नई स्किल सीखना हो, चाहे कोई सामान एक जगह पड़ा हो, और उसे उठाकर दूसरी जगह ही क्यों न रखना हो... यह तमाम परिवर्तन आपको कष्टकारी लगते हैं. जैसा चल रहा है, अर्थात 'यथास्थिति' बनाए रखने में ही लोग अपनी सहूलियत महसूस करते हैं, किंतु ध्यान दीजिए कि जब तक आप 'कंफर्ट-जोन' में रहेंगे, तब तक विकास से आप दूर ही रहेंगे.
आप को भ्रम हो सकता है कि आप विकास कर रहे हैं, किंतु परिस्थितियों के साथ अगर आपने स्वयं में, स्वयं की कार्यपद्धति में बदलाव नहीं किया, तो वह विकास जल्द ही आपके सामने एक छलावा की तरह गायब होने लगेगा. इसलिए परिवर्तनशील रहें. वह चाहे विचारों में परिवर्तन करना हो, स्थान में परिवर्तन करना हो, निर्माण में परिवर्तन करना हो, वार्तालाप में परिवर्तन करना हो, संवाद में परिवर्तन करना हो, संस्कार में उत्तम परिवर्तन करना हो, या समाज से संवाद में परिवर्तन करना हो... तैयार रहें!
वास्तव में यह सारे परिवर्तन आप को क्रमवार ढंग से लेकर चलने पड़ेंगे, तभी आप के संयुक्त परिवार की नींव मजबूत होगी, उसमें जड़ता नहीं आएगी, और इसका कम्युनिकेशन भी बेहद स्ट्रांग होना चाहिए, लोगों तक पहुंचना भी चाहिए, तभी आपको परिवर्तन की सार्थकता नजर आएगी. दूरदर्शिता से देखेंगे, तो समझ सकेंगे, कि आज के परिवर्तन को टालने का अंजाम 10 साल बाद आपके विकास को धीमा कर सकता है, जो अंततः रूक जायेगा, जड़ हो जायेगा.
जैसे आज आप पुराने मकान में रह सकते हैं, किन्तु क्या 10 साल बाद उसी मकान की रेलेवेंसी बनी रहेगी? अथवा किसी नए मकान के निर्माण की आवश्यकता है? अपने मन-मस्तिष्क को समय अनुरूप परिवर्तित करते रहना ही आपको प्रासंगिक बनाये रख सकता है.
... तो तैयार हैं न परिवर्तन हेतु?
11. रक्त-संबंध से आगे (Not only blood relations, but you should consider extended family)
यह परिवार का बदलता स्वरूप है.
ध्यान दीजिए परिवार एक भावना है. हम एक मां के पेट से जन्म लेते हैं, भाई हैं, एक जगह रहते हैं, रक्त-संबंध है, तो सामान्यतः उसी को परिवार माना जाता है, किंतु संयुक्त परिवार का अर्थ न कल यह था, न आज है, और शायद कल भी न होगा!
रामायण की ओर लौटें, और देखें कि भगवान राम जब वन गए और उन्होंने सुग्रीव से मित्रता की, तो क्या बंदर, भालू तक उनके वृहद संयुक्त परिवार का हिस्सा नहीं बन गए?
हनुमान जी के सन्दर्भ में तो भगवान राम ने कहा है कि 'तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई' - अर्थात भाई के समान बतलाया है.
सिर्फ रामायण ही क्यों, महाभारत में पांडव जब वन की ओर प्रस्थान करते हैं, तो उन्हें विराट नरेश के यहाँ शरण मिलती है. कोई कंक बनता है, कोई रसोईया, कोई किन्नर बनता है, कोई गौशाला - तो कोई घुड़साल संभालता है. वहीं कोई महारानी सैरंध्री बन कर अपना समय व्यतीत करती हैं.
इससे पहले के प्रसंग में भी जब लाक्षागृह में आग लगायी जाती है, तब पांडव वहां से निकल कर जंगल में जाते हैं, और वहां भीम को हिडिम्बा से प्रेम होता है.
वास्तव में, जीवन में जब बदलाव आते हैं, तो आपका दायरा बदल जाता है, और उस बदले हुए दायरे में आपको संयुक्त परिवार का दायरा भी बढ़ाना पड़ता है.
अतः आपको भी रामायण- महाभारत की प्राचीन परंपराओं को याद रखना पड़ेगा. आप बेशक अपने गांव से अलग हटकर, अपने रक्त- संबंधों से अलग हटकर दूसरी जगह पर रहते हैं, कहीं किराए पर मकान लेकर या फिर शहर में फ्लैट खरीदकर रहते हैं, वहां के लोग भी आपके एक्सटेंडेड फैमिली मेंबर्स ही हैं.
आप उनके साथ अधिकांश समय बिताते हैं, तो उनके साथ भी आप उसी भावना से रहें, उसी भावना से सहयोग करें. उनके बच्चों के साथ आपके बच्चे खेलते हैं, तो क्यों ना उनके साथ भी संस्कार डेवलपमेंट की प्रक्रिया में शामिल हों, यथासंभव उन्हें भी शामिल करने की सोच विकसित करें. चाहे उनके सुख- दुख में शामिल होना हो, चाहे उनको अपने सुख-दुख में शामिल करना हो, चाहे सार्वजनिक गलतियों पर टोकाटाकी हो, सामाजिक व्यवस्था बनाने में सहयोग का आदान-प्रदान हो, वह समस्त प्रक्रियाएं आपको वहां भी निभानी चाहिए.
कल्पना करें कि आपके पास अपना फ्लैट है, और हो सकता है कि उस फ्लैट की बालकनी में कुछ सब्जी (Vegetable Garden) या फूल के पौधे लगे हों. अब कल्पना करें कि आप अपने गांव जाना चाहते हैं, तो उन पौधों को सूखने का आपको भय सताने लगता है. इस भय के कारण तो कई लोग पौधे लगाना भी नहीं चाहते, और शहरों में प्रकृति-सानिध्य के सुख से वंचित रह जाते हैं.
ऐसे ही अगर किसी इमरजेंसी में आपको कहीं जाना पड़ जाए, और आपको अपने बच्चों को किसी के यहाँ छोड़ने की आवश्यकता पड़ ही जाए, तो क्या यह बेहतर नहीं है कि आपका पड़ोसी आपका अच्छा परिवारिक मित्र होगा, तो आपका काम आसान हो जायेगा. आखिर, बच्चा तो आप कहीं भी, किसी के भी यहाँ छोड़ नहीं सकते हैं, तो क्यों न पारिवारिक संबंधों की बुनियाद पर ही नए रिश्ते बनाये जायें.
हालाँकि, इसमें सुरक्षा-सम्बन्धी बहुत सारी पेचीदगियां भी हैं, पर ऐसा भी नहीं है कि यह असंभव है, अगर आप निरंतर प्रयत्न करें तो...!!
विभीषण जब लंका छोड़कर श्रीराम की शरण में आये, तो जामवंत जैसे योद्धाओं ने उनके प्रति श्रीराम को आगाह किया. पर श्रीराम तो श्रीराम थे, उन्होंने तत्काल ही विभीषण को न केवल अपने दल में, बल्कि अपने दिल में भी स्थान प्रदान किया.
चूंकि आज त्रेतायुग नहीं है, और समस्या हर जगह है, पर समाधान भी तो है. बस आपको ठीक समय पर समाधान की शुरुआत कर देनी चाहिए, क्योंकि तत्काल ढूंढेंगे कुछ, तो परखने का समय नहीं मिलेगा.
तो रक्त- संबंधों से आगे बढ़कर, संयुक्त परिवार के भाव से खुद को सिंचित रखें, जहाँ रहें, वहां यही भाव फैलाएं, उसी भाव से लोगों को अपनाएं.
12. एक्सपेक्टेशन वाला माइंडसेट (Expectation oriented Mindset in Family Structure)
जी हां! परिवार में अधिकतर जो टूटन की प्रक्रिया होती है, वह एक्सपेक्टेशन से उत्पन्न होती है कि मेरे लिए लोगों ने क्या किया?
जबकि हम यह भूल जाते हैं कि हमारे कर्तव्य निभाने का नाम परिवार है. परिवार में अक्सर लोग यह सोचते हैं कि कोई उनके व्यक्तिगत विकास की ठेकेदारी लेकर बैठा है, जबकि परिवार का आज के समय में यही मतलब है कि सार्वजनिक जवाबदेही में सभी अपनी भूमिका का निर्वहन करें, कम या अधिक!
ध्यान रहे, किसी की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को पूरा करने का नाम परिवार नहीं है. परिवार में अगर सार्वजनिक रूप से दो रोटी बनती है, उसमें सभी के हिस्से में आधा-आधा रोटी ज़रूर मिल सकती है, मिलनी ही चाहिए, किंतु परिवार की सामूहिक व्यवस्था में आपको अलग से लग्जरी-सिस्टम उपलब्ध कराया जायेगा, यह एक्सपेक्टेशन अनर्थकारी है.
परिवार आपके नाम पर प्रॉपर्टी लेकर नहीं दे सकता है, आपके लिए लग्जरी BMW कार खरीदकर नहीं दे सकता है, यह तो आपको व्यक्तिगत रूप से स्वयं ही करना होगा, और अगर कोई योग्य व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत मेहनत से आगे बढ़ता है, तो उससे जलन भी नहीं रखनी होगी, उसे बधाई देनी होगी.
हमें इस चीज को बड़े ध्यान से समझना चाहिए कि व्यक्तिगत विकास और परिवारिक रुप से बेसिक जिम्मेदारियां निभाने की जो आवश्यकता है, वह व्यावहारिक होना चाहिए. उसी प्रकार से परफेक्शन किसी के व्यवहार में तत्काल आ जाए, इसकी कल्पना दिवास्वप्न ही है.
हाँ! एक परिवार के स्तर पर आपको एक कॉमन प्लेटफार्म डेवलप ज़रूर करना चाहिए, जहाँ उपलब्ध ज्ञान-संस्कार से तमाम परिवारीजनों की नींव मजबूत हो, पर ऐसी अवस्था में आपको परफेक्शन से बचना चाहिए.
हो सकता है कि आप किसी शहर में रहते हों, और वहां पर आपने व्यक्तिगत रूप से तमाम सुविधाएं कर रखी हों, किन्तु गांव में अगर कूलर या पंखा है, तो आपको वहां भी परफेक्शन वाली एक्सपेक्टेशन से बचना चाहिए.
हां आप अधिक से अधिक सुविधाएं करने की दिशा में बढ़ सकते हैं, या फिर बेसिक सुविधाओं के लिए आप और लोगों को मोटिवेट जरूर कर सकते हैं. सुरक्षा की दृष्टि से, सम्मान की दृष्टि से, भविष्य की दृष्टि से जो कुछ आवश्यक हो, उस निर्माण पर बाकी लोगों को राजी करने की कोशिश, आपको निश्चित रूप से आगे की तरफ बढ़ाएगी. साथ ही आपकी पारिवारिक नींव को भी मजबूत करेगी, उसे सार्थक मोड़ देगी.
तो एक्सपेक्टेशन की बजाय, आप क्या कर्तव्य कर रहे हैं, उस पर ध्यान दें, और परफेक्शन की बजाय बेसिक सुविधाओं से शुरुआत करें.
13. धर्म, चरित्र- निर्माण, सहयोग की आधारशिला (The Real Duty - Dharma, Character Building and Model of Cooperation in United Family)
ध्यान दीजिए, अगर आप किसी के साथ भी अपना संबंध लंबा चाहते हैं, तो उसके मूल में धर्म होना चाहिए. लालच, अधर्म, स्वार्थ जिसकी नींव में हो, वैसी आधारशिलायें आपको बहुत ऊपर नहीं ले जा पाएंगी.
यह तत्कालिक रूप से कुछ बिजनेस पार्टनर्स में हो सकता है, और होता भी है, किन्तु उनसे पारिवारिक भाव की उम्मीद नहीं की जा सकती है.
अधर्म के आधार पर कोई भी संबंध एक गिरोह-मात्र होता है.
उनमें तात्कालिक स्वार्थ भर ही होता है, जबकि परिवार दीर्घकालिक सामंजस्य हेतु होता है.
इसका कारण भी बड़ा साफ़ है, और वह यह है कि परिवार में कई पीढ़ियाँ होती हैं, और वह आगे भी रहने वाली हैं, तो कभी न कभी आपका पिटारा खुलेगा ही.
अतः इसका एकमात्र आधार धर्म ही हो सकता है. धर्म की कल्याणकारी भावना ही संयुक्त परिवार की नींव को मजबूत कर सकती है. बेशक धर्म कई बार कठोर भी होता है, किन्तु नींव के पत्थर भी तो कठोर होते हैं, तभी उसके ऊपर बहुमंजिली ईमारत का निर्माण संभव हो पाता है. धर्म ही आपके व्यक्तिगत चरित्र को भी उज्जवल बनाता है.
ज़रा ध्यान दें. आजकल शराब कॉमन रूप से कई लोग पीते हैं, एक तरह से यह कल्चर में शामिल हो चला है. किन्तु अगर परिवार में आप खुलेआम शराब पीकर आते हैं, और कोमल हृदय, नाजुक मस्तिष्क के बच्चों पर उसका दुष्प्रभाव पड़ता है, तो आपके लिए बेशक यह नार्मल हो, किन्तु हकीकत यह है कि आप परिवार की अगली पीढ़ी का चरित्र दूषित करने के दोषी साबित हो सकते हैं. कई कुतर्की लोग यह कह सकते हैं कि उनके अपने बच्चों को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन परिवार में अगर आपके भाई का बच्चा है, और आपकी शराब की गंध, या आपकी सिगरेट की गंध उसकी नाक तक पहुँचती है, तो तत्काल सजग हो जायें. आमतौर पर लोगबाग उसी किचन के फ्रीज में बियर की बोतलें - केन रख देते हैं, जिसका एक्सेस बच्चों को भी होता है. ज़रा कल्पना कीजिये! ऐसे माहौल का दूरगामी परिणाम क्या होगा?
अगर एक बार भी ऐसी गलती होती है, तो परिवार के बाकी सदस्यों को इसका तत्काल संज्ञान लेना चाहिए, और सम्बंधित व्यक्ति को सख्त वार्निंग दी जानी चाहिए. अगर वह अनदेखा करता है, तो परिवार के बाकी लोगों को उससे दूरी बनाने में देरी नहीं करनी चाहिए.
ऐसे कई उदाहरण हो सकते हैं, जहाँ परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को सजग होना ज़रूरी होता है. व्यावहारिक विकल्प तलाशे जा सकते हैं, किन्तु चरित्र कब दूषित होना शुरू हो रहा है, इस पर अतिरिक्त सजगता आवश्यक है.
परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को अपने चरित्र पर ध्यान देने की जरूरत है. गाली गलौच आजकल आम बात हो चली है. हो सकता है कि शहर में आप भी अपने एकल परिवार में गाली गलौच करके बात करते हों, किंतु संयुक्त परिवार में यह अस्वीकार्य स्थिति है. सार्वजनिक स्थल पर भी आपको बेहतरीन व्यवहार करना आवश्यक हो जाता है.
ऐसी स्थिति में बेहतरीन चरित्र निर्माण के लिए आपको यत्न करना ही होगा, और यही वह रास्ता है, जिससे आपसी विश्वास मजबूत होगा, दीर्घकालिक रूप से मजबूत होगा.
इसी प्रकार अगर सहयोग की बात करें, तो तात्कालिक एवं दीर्घकालिक सहयोगी मानसिकता का संयुक्त परिवार में होना आवश्यक है. जैसे अगर परिवार में कोई व्यक्ति गरीब है, तो उसकी तत्कालिक मदद जो भी की जाए, किंतु दीर्घकालिक रूप से आप उसके प्रति क्या सहयोग कर सकते हैं, कौन सी स्किल सिखा सकते हैं, वह ध्यान देना कहीं ज्यादा आवश्यक है.आजकल के तमाम लोग प्रोफेशनल हो रहे हैं, एक ही परिवार के अलग-अलग बच्चे, देश के बड़े-बड़े शहरों में... यहाँ तक कि विदेश तक में सेटल हैं, तो क्या वह ऑनलाइन रूप से एक दूसरे को सलाह देकर, एक दूसरे को मजबूत नहीं कर सकते हैं?
मदद लेने वाले भी आजकल दुर्योधन की तरह 'नारायणी सेना' जैसे संसाधन की ही अपेक्षा लगाये बैठते हैं, किन्तु हकीकत यह है कि कल भी योग्य सलाह देने वाले श्रीकृष्ण की ही महत्ता ज्यादा थी, और आज भी यही सत्य है. अन्यथा तमाम पब्लिक स्पीकिंग, ट्रेनिंग आदि को प्रमोट क्यों किया जाता?
...तो अगर आप प्रोफेशनल लाइफ में भी कहीं रुक रहे हैं, परेशान हैं, तो परिवारिक लोगों से सलाह- मशविरा अवश्य लें और दें. आखिर आप किसी बाहरी मोटिवेटर, किसी बाहरी बाबा के पास जाकर पैसे देकर ज्ञान लेते हैं, तो अपने परिवार में मौजूद व्यक्ति से भला संवाद करने में क्या बुराई है?
हाँ! ज्ञान लेने और देने से पहले धर्म और चरित्र-निर्माण जैसे मानकों पर खुद को और सामने वाले को तौल ज़रूर लें. कहीं ऐसा न हो कि आप सीए (Chartered Accountant) हैं, और वह आपसे किसी ग़लत काम में आपकी मदद चाहता है. गलत काम से निकालने में उसे सलाह तो दे सकते हैं आप, किन्तु गलत कार्य जारी रखने की अगर जिद्द है, तो कतई इसमें शामिल न हों... अन्यथा ध्यान रखें, आपका फंसना तय है, और न केवल आपका, बल्कि पूरा परिवार इसका भुक्तभोगी साबित हो सकता है. ऐसे में संयुक्त परिवार की नींव मजबूत होने की बजाय कमजोर हो सकती है.
अतः धर्म, चरित्र-निर्माण और वास्तविक सहयोग को सर्वदा ही केंद्र में रखें.
14. इतिहास, रेफरेंस गाइड (History, Reference Guide in United Family System)
हम जब कोई लेख लिखते हैं, कोई इंफॉर्मेशन लेते हैं, यहाँ तक कि कोई बात भी कहते हैं, तो उसका सोर्स क्या है, उसके पीछे कोई रिसर्च है, कोई ऐतिहासिक किताब है, किसी योग्य व्यक्ति का कथन है, यह जानना बड़ा महत्वपूर्ण हो जाता है. लेखन की दुनिया में इसे Credible Source Link कहा जाता है.
ऐसे ही संयुक्त परिवार में, वर्तमान समय में जो भी निर्णय हम ले रहे हैं, वह कल को इतिहास हो जाएगा. चूंकि परिवार में कई पीढ़ियां जुड़ी होती हैं, अतः आपस में आज आप जो भी निर्णय ले रहे हैं, भविष्य की पीढ़ियाँ उस पर विवाद ना करें, इसीलिए उसको यथासंभव डॉक्यूमेंट रूप में अवश्य डालें. खासकर बड़े निर्णयों को!
चूंकि आजकल डिजिटल रिकॉर्ड, दस्तावेज महत्वपूर्ण हो चले हैं, तो तमाम बातों को आपको डिजिटली डॉक्यूमेंट करना आवश्यक हो जाता है.
जैसे कि आप कोई प्रॉपर्टी ले रहे हैं, तो प्रॉपर्टी किन शर्तों पर ली जा रही है, अगली पीढ़ी के लिए इसका एक रेफरेंस गाइड होना ज़रूरी हो जाता है. ऐसे ही अगर आप कॉमन में घर का निर्माण कर रहे हैं, तो उसकी शर्तें क्या हो सकती हैं, समस्याएं क्या आ सकती हैं, उसका समाधान वर्तमान क्या सोचता है, इत्यादि को आप डॉक्यूमेंट करके लिपिबद्ध कर सकते हैं, ताकि भविष्य की पीढ़ियां उसका रेफरेंस ले सकें, और उन पॉइंट्स को लेकर किसी संभावित विवाद से बचने की संभावना मौजूद हो.
हालाँकि हम, आप या कोई भी इतिहास से सीख ज़रूर ले सकते हैं, किन्तु आने वाला भविष्य जब वर्तमान बनेगा, तब उसकी अपनी व्याख्या करेगा ही करेगा. उस वक्त की अपनी चुनौतियाँ होंगी, उन चुनौतियों से निपटने का अपना फार्मूला विकसित होगा. पर इसमें महत्वपूर्ण फैसलों को लिपिबद्ध किया जाना बेहद सार्थक सिद्ध हो सकता है.
इस तरीके से आपका संयुक्त परिवार, ना केवल वर्तमान में, बल्कि भविष्य में भी मजबूत नींव पर टिका रहेगा. परिवर्तन के साथ खुद के स्वरूप को निरंतर बदलता हुआ परिवार का संयुक्त स्वरुप, धर्म सम्मत विकास-पथ पर निरंतर आगे बढ़ता जायेगा.
अगर उपरोक्त 14 पॉइंट्स को आप ध्यान दें, और उनको मन में बसा लें, क्रियान्वयन में आधार बना लें, तो ऐसा कोई कारण नहीं है कि आप के संयुक्त परिवार की नींव मजबूत ना हो, और ना केवल आपका वर्तमान, बल्कि भविष्य के निर्माण को भी मजबूत होने से कोई रोक नहीं सकता.
इन 14 Points को आप श्रीराम के 14 वर्ष के वनवास की तरह ही समझ लें, और उसका निरंतर अभ्यास करें... निरंतर... निष्काम!
आप यकीन मानिये, स्वयं आप इसके साक्षी होंगे, और ऐसी कोई चुनौती नहीं होगी, ऐसी कोई कठिनाई नहीं होगी, जो ऊपर के पॉइंट्स को धर्मपूर्वक आत्मसात करने के बाद आप उस चुनौती-कठिनाई से निपट नहीं सकेंगे.
यकीन मानिए, यही वह पॉइंट्स हैं, जो आप को प्रगति पथ पर ले जाएंगे. बस करना क्या है कि आपको समय-समय पर इन पॉइंट्स को एनालाइज करते रहना है. किस दिशा में संयुक्त परिवार की आधुनिक व्यवस्था आगे बढ़ रही है, समय- समय पर उस में सुविचारित, लोकतांत्रिक बदलाव करते रहना है. यही एनालिसिस आपको उन्नति की ओर, तो आपके संयुक्त परिवार को प्रगति-पथ पर ले जाएगी.
संयुक्त परिवार के सन्दर्भ में इस समग्र लेख को मिथिलेश ने अपने अनुभवों में अध्ययन के आधार पर लिखा है, पर आप क्या सोचते हैं, यह महत्वपूर्ण है.
अगर इस चर्चा को आगे बढाने हेतु, आप भी हमारे साथ जुड़ना चाहते हैं, आपके कुछ पॉइंट्स हैं, आप कुछ कहना चाहते हैं, कुछ पूछना चाहते हैं, तो प्रत्येक रविवार को दोपहर के 1:00 बजे से 1.40 तक, तकरीबन 40 मिनट की सार्वजनिक ऑनलाइन मीटिंग में आ सकते हैं, अपनी चर्चा कर सकते हैं.
इससे सम्बन्धित जानकारी Whatsapp Group पर दी जाती रहेगी. संयुक्त परिवार के हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिए आप इस लिंक पर क्लिक कीजिए (https://bit.ly/families2022), किंतु यहां जुड़ने से पहले बेसिक नियमावली अवश्य पढ़ लें.
संयुक्त परिवार का समर्थक होने के साथ-साथ, आपको अपनी पहचान इस ग्रुप में जाहिर करनी पड़ेगी. आप ग्रुप पर जो भी लिखेंगे, उसके उत्तरदायी आप स्वयं ही होंगे. इस Whatsapp group में किसी प्रकार के पैसे का लेनदेन, आदान-प्रदान प्रतिबंधित है, और ग्रुप का नाम लेकर, ना ही आप ऐसी किसी गतिविधि में शामिल होंगे.
प्रत्येक सप्ताह मीटिंग में आने का प्रयत्न करेंगे, और संयुक्त परिवार रुपी संस्था के पुनर्निर्माण हेतु, व्यक्ति के चरित्र निर्माण हेतु जो भी बात कहेंगे, वह बातें आधार युक्त होंगी, और उनमें से मानने योग्य बातों को आप अपने परिवार में मानने-समझाने का प्रयत्न भी करेंगे. वास्तविक रूप से उज्जल चरित्र के निर्माण में आप स्वयं को भी प्रस्तुत करेंगे. इस शपथ के साथ आप हमारे Whatsapp Group से जुड़ें. कॉल करना चाहें, तो इसी ग्रुप के एडमिन नम्बर्स पर समपर्क कर सकते हैं.
संयुक्त परिवार - New Age कम्युनिटी में आपका हार्दिक स्वागत है: https://bit.ly/families2022
धन्यवाद सहित,
लेखक: मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली
Published on 26 June 2022 (Update: 27 June 2022, 04:00 IST)
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