Environment and Mahatma Gandhi, Hindi Article by Dr. Kamini Varma |
आज दिल्ली ,एन सी आर सहित देश के सभी महानगरों में वर्षाकाल के कुछ दिनों के अतिरिक्त वर्ष भर वायु एवं जल प्रदूषण गंभीर चिंता का विषय रहता है।ग्लोबल वॉर्मिंग ,जलवायु परिवर्तन,पर्यावरणीय असमानता की चर्चा आज हर व्यक्ति की जिह्वा पर रहती है।यह स्वाभाविक भी है क्योंकि इससे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। लोग जानलेवा बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। वैश्वीकरण के दौर में हमारा जीवन तकनीक का दास बनता जा रहा है। आधुनिक तकनीक जहां हमारे जीवन को आरामदायक विलासिता पूर्ण जीवन शैली प्रदान कर रही है वहीं बहुत सी बहुत सी घातक बीमारियों से ग्रसित भी कर रही है।
जल ,वायु और ध्वनि से प्रदूषित देश में लीवर ,अस्थमा,कैंसर तथा श्रवण संबंधी ब्याधियों की संख्या में वृद्धि हुई है।प्रदूषित वायु से होने वाले रोगों की यह स्थिति है आज अस्पताल पहुँचने वाला हर तीसरा व्यक्ति श्वास रोगी है।
उच्च उपभोक्तावादी संस्कृति ,वृहद् मात्रा में वनों की कटाई ,जनसंख्या में अतिशय वृद्धि ,प्राकृतिक संसाधनों का दोहन ,ऊर्जा का अत्यधिक उपभोग पर्यावरण को प्रदूषित करने में मुख्य भूमिका का निर्वहन करता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में उल्लिखित है ,संपूर्ण विश्व में 40 प्रतिशत बीमारियां पर्यावरण के दूषित होने के कारण होती हैं। ऐसे जटिल समय में महात्मा गांधी बरबस ही याद आ जाते हैं। उनका त्यागमय सादगी युक्त जीवन ,आवश्यकता सिद्धान्त पर आधारित विचारधारा प्रकृति के अल्प दोहन की अनुमति देती है।भौतिक सुख और आराम के साधनों के निर्माण व उनके निरन्तर विकास व खोज को उन्होंने बुराई माना।औद्योगीकरण में पश्चिमी देशों का अनुकरण पृथिवी के लिये खतरा बताया । स्वच्छ्ता व संयम पर केंद्रित गाँधीजी की विचारधारा ने पर्यावरण की शुद्धता के लिये वनों के अतिशय दोहन का विरोध व वर्षा जल संरक्षित करने के लिए प्रेरित किया।वृक्ष और गौ पूजन को उन्होंने वनस्पतियों तथा जीवधारियों के संरक्षण के रूप में देखा ।गाँधीजी का अहिंसा का सिद्धांत ,स्वावलंबन एवं मानव श्रम पर आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था ,हस्तशिल्प और कला केंद्रित शिक्षा पद्धति पर्यावरण संदूषण को दूर करने में निश्चित ही सहयोगी है।प्रकृति के पास हमें देने के लिये विपुल संपदा है जो हमें निःशुल्क प्राप्त है ,वह हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तत्पर है परंतु स्वार्थवश शोषण करने पर उसके विनाशकारी रूप से भी हम भली भांति परिचित हैं।आज अवश्यकता है गांधी जी के न्यूनतम आवश्यकता विचार को आत्मसात करने की जिससे हम प्रकृति को स्वस्थ रखते हुए स्वयं को सुरक्षित रख सकें।
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