आप जानते हैं 'वह धोबी' कौन था, जिसने सीता पर...
राम!
वह नाम जिसे मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है.
वह नाम, जिसने जीवन के तमाम कर्तव्यों को बड़ी सहजता से निभा लिया था, बगैर किंकर्तव्यविमूढ़ हुए!
किन्तु एक 'धोबी' के कारण राम पर लांछन लग गया.
एक धोबी के कारण ही सीता को वन में जाना पड़ा, हमेशा-हमेशा के लिए.
एक धोबी के कारण ही महारानी सीता, जो स्वयं त्रिलोक के स्वामी की पत्नी थीं, उन्हें वन में कष्टों के बीच रहकर अपने पुत्रों लव-कुश का लालन-पालन करना पड़ा था.
यहाँ पर यह प्रश्न संदर्भजनित है कि आखिर वह धोबी था कौन?
पूर्व-प्रसंग
यह बात अधिकांश रामायण-प्रेमियों को ज्ञात ही होगी कि मिथिला नामक राज्य में महाराज जनक का राज्य था. प्रसंगानुसार एक बार वे यज्ञ-कार्य हेतु पृथ्वी पर हल जोत रहे थे, ठीक उसी वक्त उनके हल की फाल एक घड़े से टकराई. हल चलाते हुए जब राजा जनक ने रूककर देखा तो वहां एक कुमारी कन्या थी. अप्सराओं से भी सुंदर कन्या को देख कर राजा बेहद प्रसन्न हुए एवं उस बालिका का नाम सीता रखा गया.
सीता एक दिन अपनी सहेलियों के साथ उद्यान में खेल रहीं थीं. वहाँ उन्हें एक शुक (तोते) पक्षी का जोड़ा दिखाई दिया.
वे दोनों पक्षी एक पर्वत की चोटी पर बैठ कर बातें कर रहे थे. उनकी बातें कुछ इस प्रकार से थीं कि ‘धरती पर रामचंद्र नाम से विख्यात एक बड़े प्रतापी राजा होंगे. उनकी महारानी, सीता के नाम से सुविख्यात होंगी.'
इतना ही नहीं वह पक्षी जोड़ा आगे भी बात करते रहे कि राम अपनी धर्मपत्नी सीता के साथ ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य करेंगे. जाहिर तौर पर शुक जोड़े को इस प्रकार बातें करते देख राजकुमारी सीता को काफी रोमांच हुआ और उनके मन में उस जोड़े को पकड़ने का विचार उत्पन्न हो गया.
ऐसे में उन्होंने खुद की सखियों से कहा कि ‘यह पक्षियों का जोड़ा अत्यंत सुंदर है. इनको चुपके से पकड़ लाओ.’
सहेलियों ने ठीक ऐसा ही किया!
उनके पास आने पर सीता ने उन पक्षियों से सारी बातें पूछ डाली.
पहले तो दोनों पक्षी सकुचाये, किन्तु सीता द्वारा भयरहित होने का आश्वासन देने के बाद उन्होंने विस्तार से सब कुछ बताना शुरू किया.
वाल्मीकि रामायण की महिमा!
जी हाँ, इस प्रसंग से यह बात भी स्पष्ट ढंग से सामने आती है कि महर्षि वाल्मीकि ने तमाम घटनाओं के पूर्व ही उन्हें देख लिया था और उसे एक ग्रन्थ के आकार में ढाल भी दिया था.
यही बात पक्षियों के जोड़े ने सीता को बताई.
उन तोतों ने सीता को यह भी बताया कि वाल्मीकि ने अपने शिष्यों को रामायण का अध्ययन कराया है, जिसे शुक-जोड़ों ने सुन लिया है.
इसके अतिरिक्त भी तमाम बातों को उन पक्षियों ने वर्णित किया, मसलन महर्षि ऋष्यश्रंग द्वारा पुत्रेष्टि-यज्ञ के प्रभाव से भगवान विष्णु का राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रूप में प्रकट होना, उनका मिथिला आना, शिव-धनुष को तोड़ना इत्यादि.
ऐसी तमाम बातों को सुनाकर उन पक्षियों ने निवेदन किया कि हे राजकुमारी! हमने सब कुछ बता दिया. अब हम जाना चाहते हैं, इसलिए हमें छोड़ दो. हालाँकि, सीता के मन में और भी तमाम प्रश्न थे और वह उत्सुकतावश प्रश्न पर प्रश्न पूछती जा रही थीं, जिससे मादा तोते ने यह ताड़ लिया कि यही राजकुमारी सीता हैं, जिनके बारे में महर्षि वाल्मीकि ने अपने रामायण में वर्णन किया है.
हालाँकि, इसके बावजूद उस पक्षी जोड़े ने कई बातें सीता को बताई और यह भी प्रकट किया कि वही 'सीता' हैं, जिनकी चर्चा वह इतनी देर से कर रहे हैं, किन्तु सीता उस पक्षी जोड़े को छोड़ना नहीं चाहती थीं, तब तक जब तक उनकी शादी श्रीराम से नहीं हो जाती!
यह सुनकर शुकी ने जनकनन्दिनी से कहा कि-
हे राजकुमारी! हम वन के पक्षी हैं और हमें तुम्हारे घर में सुख नहीं मिलेगा. मैं गर्भिणी हूँ, अपने स्थान पर जाकर बच्चे पैदा करूँगी. उसके बाद फिर यहाँ आ जाऊँगी.
उसके ऐसा कहने पर भी सीता ने उसे नहीं छोड़ा!
...और हो गया सीता के द्वारा यह 'पाप'!
दोनों पक्षियों ने खूब निवेदन किया, किन्तु जनकनन्दिनी टस से मस नहीं हुईं.
आखिरी बार निवेदन करते हुए नर तोते ने कहा कि वह उस जोड़े को छोड़ दें और बच्चों के जन्म के बाद वह वापस आ जायेंगे, किन्तु सीता मादा पक्षी को छोड़ने को तैयार न हुईं.
ऐसे में वह पक्षी अत्यंत दुखी हो गया. उसे दुःख होने लगा कि क्यों आखिर उसने रामायण कि चर्चा की. अगर वह चुप रहता तो उसे यह दिन न देखना पड़ता. नर तोते ने वियोग करते हुए पुनः कहा कि अगर सीता ने उन्हें नहीं छोड़ा तो अनर्थ हो जायेगा!
अपने पति को इस तरह अपमानित होते देखकर मादा शुकी बेचैन हो उठी और अंततः उसने सीता को श्राप दे डाला कि 'सीता! जिस प्रकार वह दोनों को प्रताड़ित कर रही हैं, एक दूसरे से अलग कर रही हैं, ठीक वैसे ही सीता को भी गर्भ अवस्था में ही श्री राम से अलग होना पड़ेगा.’
ऐसा कहकर पति वियोग के कारण उसके प्राण निकल गये. कहा जाता है कि प्राण त्यागते समय उसने श्री राम जी का स्मरण किया था, इसलिए उसे ले जाने के लिए एक सुंदर विमान आया और वह पक्षिणी उस पर बैठकर ईश्वर धाम को चली गयी.
नर शुक ही बना अगले जन्म में 'धोबी'!
अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात नर पक्षी शोक से आतुर हो उठा और उसने प्रतिज्ञा ली कि ‘वह श्री राम की नगरी अयोध्या में मनुष्य रूप में जन्म लेगा एवं उसी के कहने पर सीता को वियोग का अत्यंत दुख उठाना पड़ेगा.’
यह कहकर वह चला गया. कालांतर में क्रोध और सीता जी का कटु अपमान करने के कारण उसका धोबी की योनि में जन्म हुआ.
आगे की कथा हम सबको ज्ञात ही है कि उसी धोबी के कारण सीता जी निन्दित हुईं और उन्हें अपने पति श्रीराम से अलग रहना पड़ा, वह भी गर्भ की अवस्था में.
ऐसे तमाम उदाहरण हमारे शास्त्रों में मिलते हैं कि जो कुछ भी घटित होता है, अंततः वह हमारे ही कर्मों का परिणाम होता है और कर्म के फल से किसी को भी मुक्ति नहीं मिल सकती, वह चाहे राम हों, चाहे वह जनकनन्दिनी सीता ही क्यों न रही हों!
इस सम्बन्ध में आप का क्या विचार है?
Dhobi: The Laundryman of Ramayana in Hindi, The Story of Laundryman in Ramayan, Dhobi ki kahani
👉 Be a Journalist - Be an experienced Writer. Now! click to know more...
How to be a writer, Know all details here |
👉 सफल पत्रकार एवं अनुभवी लेखक बनने से जुड़ी जानकारी लेने के लिए इस पृष्ठ पर जायें.
Liked this?
We also provide the following services:
Are you a writer? Join Article Pedia Network...
Article Pedia Community के Whatsapp Group से यहाँ क्लिक करके जुड़ें, और ऐसे लेखों की Notification पाएं.
👉Startup, टेक्नोलॉजी, Business, इतिहास, Mythology, कानून, Parenting, सिक्यूरिटी, लाइफ हैक सहित भिन्न विषयों पर... English, हिंदी, தமிழ் (Tamil), मराठी (Marathi), বাংলা (Bangla) आदि भाषाओं में!
Disclaimer: The author himself is responsible for the article/views. Readers should use their discretion/ wisdom after reading any article. Article Pedia on its part follows the best editorial guidelines. Your suggestions are welcome for their betterment. You can WhatsApp us your suggestions on 99900 89080.
क्या आपको यह लेख पसंद आया ? अगर हां ! तो ऐसे ही यूनिक कंटेंट अपनी वेबसाइट / ऐप या दूसरे प्लेटफॉर्म हेतु तैयार करने के लिए हमसे संपर्क करें !
0 Comments