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Published on 29 Jan 2023
अर्जुन के पुत्र ने किया था उनका वध और पत्नी ने दिया था जीवन दान!
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार अर्जुन वो धनुरधारी थे, जिन्हें धरती-पाताल और आकाश में कोई भी पराजित नहीं कर सकता था. जब एकलव्य ने यह प्रयास किया तो खुद गुरु द्रोण ने उसे असहाय बनाकर अर्जुन को प्रथम स्थान पर काबिज रहने दिया.
बावजूद इसके भविष्य में अर्जुन का वध हुआ!
बेशक यह आश्चर्य से भर जाने वाली बात है, क्योंकि महाभारत में तो ऐसा कुछ भी वर्णित नहीं है. किन्तु, विष्णु पुराण के अनुसार महाभारत के बाद की एक कहानी है. जिसमें अर्जुन की मृत्यु और फिर पुन: जीवित होने का रहस्य छिपा हुआ.
इस कहानी का दूसरा प्रमुख किरदार है उलूपी, जोकि एक नागकन्या और अर्जुन की चौथी पत्नी के रूप में जानी जाती हैं.
तो चलिए जानते हैं उलूपी और अर्जुन की इस रहस्यमयी कहानी को-
जब अर्जुन को मिला एक वर्ष का वनवास
अर्जुन के वध का रहस्य उजागर करने से पहले दूसरी प्रमुख पात्र उलूपी के बारे में जान लेना सही होगा. महाभारत के अनुसार उलूपी एक नाग कन्या थीं. जिसके पिता का नाम था राजा कौरव्य था. वे धरती के किसी देश के नहीं, बल्कि गंगा में बसे नाग समुदाय के महामहीम थे. इस तरह उलूपी एक नाग कन्या थीं.
अब तक हमने इंसानों की इंसानों से, देवताओं की मनुष्यों से और राक्षसों की छल से विवाह की कई कहानियां सुनी हैं. पर सबसे दिलचस्प है नाग कन्या उलूपी और धनुरधारी अर्जुन के विवाह की कहानी.
दरअसल द्रौपदी के पांच पति, पांच पांडव थे. यह सभी को ज्ञात है कि उन पांचों के बीच यह नियम निर्धारित था कि द्रौपदी एक साल तक केवल एक पांडव की पत्नी होगी. यह नियम युधिष्ठिर ने बनाया था. जिसके अनुसार यदि द्रौपदी समय सीमा के भीतर कक्ष में किसी एक पांडव के साथ हैं, तो दूसरा कोई भी भाई उस कक्ष में एक साल तक प्रवेश नहीं कर सकता.
यदि किसी ने धोखे से भी ऐसा किया तो उसे एक साल का वनवास भोगना होगा.
किन्तु, महाभारत की योजना बनने से पहले ऐसी एक घटना घटित हुई, जिसने अर्जुन के जीवन को बदलकर रख दिया. महाभारत के अनुसार जिस वर्ष द्रौपदी युधिष्ठिर के साथ अपने कक्ष में एकांत में थीं. उसी वक्त एक किसान राजदरबार में पहुंचा. किसान ने बताया कि कोई उसकी गाए चुरा कर ले जा रहा है. यदि उसे नहीं रोका गया तो मेरी आजीविका बंद हो जाएगी.
अर्जुन ने कहा कि वह उसकी मदद करेंगे. पर जब उनकी नजर अपने शस्त्र पर गई तो देखा कि गांडीव तो द्रौपदी के कक्ष में ही छूट गया है. कक्ष में द्रौपदी युधिष्ठिर के साथ थीं. ऐसे में अर्जुन का वहां जाना वर्जित था, पर किसान की मदद न करना भी धर्म से मुंह मोड़ने जैसा था. इसलिए उसने तय किया कि वह किसान की मदद के लिए द्रौपदी के कक्ष में प्रवेश करेंगे.
इसी निर्णय के साथ अर्जुन ने द्रौपदी के एकांत में खलल डालते हुए अपना गांडीव उठाया और किसान की मदद के लिए पहुंच गए. जब वे वापिस आए तब सीधे युधिष्ठिर के पास पहुंचे और याचना करते हुए कहा कि यह मेरा अपराध है कि मैंने द्रौपदी के साथ पांडवों के वचन को तोड़ा है. अत: मैं एक वर्ष के वनवास को भोगने के लिए तैयार हूं. हालांकि युधिष्ठिर ने अर्जुन के नियम तोड़ने का कारण जानने के बाद उन्हें निर्दोष पाया, पर अर्जुन ग्लानि महसूस कर रहे थे. इसलिए वे वनवास चले गए.
अर्जुन ने नागकन्या से किया गंर्धव विवाह
वनवास की यात्रा के दौरान अर्जुन हरिद्वार पहुंचे. जहां वे गंगा स्नान कर रहे थे. जब यह खबर नागलोक को हुई, तो उन्होंने अर्जुन को मारने की योजना बनाई. यह योजना इसलिए बनाई गई थी कि अर्जुन ने अपने नगर इंद्रप्रस्थ को बचाने के लिए धरती पर कई नागों का संहार किया था. इस बात से नागलोक पांडवों से खफा था.
अर्जुन का खुद गंगा में आना उनके लिए किसी अवसर से कम नहीं था. कोई उन पर हमला कर पाता इसके पहले नाग कन्या उलूपी ने कहा कि यह कार्य वह स्वयं करेगी. उलूपी राज कन्या तो थी ही, साथ ही विधवा भी थी. दरअसल उसका पति भी नाग वंश से संबंधित था, पर उसकी मौत एक गरुण के हाथों हो गई थी. तब से राजकुमारी अपने पिता के साथ ही थी.
खैर जब उलूपी अर्जुन को मारने के लिए गंगा तट के किनारे पहुंची, तो वह उन्हें देखकर मोहित हो गई. अर्जुन के प्रति उसके आर्कषण ने बदले की भावना को खत्म कर दिया.
वह नाग रूप से एक स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गई और अर्जुन को अपहरण करके नाग लोक ले आई. जहां समस्त नागलोक यह सोच रहा था कि उलूपी ने साहस का काम किया है. वहीं उलूपी अर्जुन की बेहोशी खत्म होने का इंतजार कर रही थी.
कुछ दिनों में अर्जुन को होश आया और उन्होंने अपने सामने उलूपी को पाया. उलूपी ने कहा कि मैं अपने वंश का बदला लेने के लिए आपके पास आई थी, पर अब मैं आपसे विवाह करनाचाहती हूं. कृपया मेरे प्रेम को स्वीकार करें. अर्जुन विवाह के विषय में कुछ कह पाते, इसके पहले ही उलूपी ने कहा कि मैं जानती हूं कि आपकी तीन पत्नियां हैं. पर मुझे चौथी पत्नी बनने से कोई परहेज नहीं. उलूपी ने अपने पिता और समस्त नागवंश का अर्जुन से समझौता करवाया.
इस समझौते के बदले अर्जुन ने उलूपी से गंधर्व विवाह किया. चूंकि वे हमेशा के लिए नागलोक में नहीं रह सकते थे, इसलिए कुछ वक्त गुजारने के बाद वहां से जाने लगे. वनवास का समय भी खत्म हो गया था, इसलिए उन्हें वापिस इंद्रप्रस्थ पहुंचना आवश्यक था. उलूपी ने अर्जुन को नहीं रोका, पर जाने से पहले उन्हें सूचना दी कि वह अर्जुन की संतान को जन्म देने वाली है.
इसके साथ ही अर्जुन को वरदान दिया कि जल युद्ध में आप कभी पराजित नहीं हो सकते. कोई जलचर आपके लिए कभी नुक्सानदायक साबित नहीं होगा. अर्जुन ने उलूपी से विदा ली और इंद्रप्रस्थ आ गए. दूसरी ओर उलूपी ने इरावन नाम के पुत्र को जन्म दिया. इरावन वही थे, जिन्होंने महाभारत में पांडवों की जीत के लिए स्व: आहूति दी थी. बाद वह किन्नरों के देवता कहलाए.
पुत्र ने अपने ही पिता पर किया वार
उलूपी और अर्जुन के विवाह की घटना क्षणिक मात्र की तरह ही थी. उलूपी से पहले अर्जुन की तीन और पत्नियां थीं. द्रौपदी, कृष्ण की बहन सुभद्रा और मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा से किया था.
चित्रंगदा अपने मायके में ही रही, जहां उन्होंने बभ्रुवाहन नाम के पुत्र को जन्म दिया. उलूपी चित्रंगदा से परिचित थीं और इसलिए बभ्रुवाहन से भी उसका लगाव रहा. उलूपी ने बभ्रुवाहन को विशेष युद्ध विद्या सिखाई थी.
खैर यहां मुद्दे की बात यह है कि महाभारत के बाद युधिष्ठिर और सभी पांडव काफी दुखी थे. उनके राज्य का खजाना खाली हो गया था. उनके अपने भाई, गुरू और वशिष्ठजनों की मौत हो चुकी थी. मन की शांति और सभी पश्चातापों को पूरा करने के लिए युधिष्ठिर ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन करने की योजना बनाई. धनराशि पर्याप्त नहीं थी, पर फिर भी राज्यों से मदद लेकर युधिष्ठिर ने एक भव्य यज्ञ समारोह आयोजित किया और अश्व की रक्षा की जिम्मेदारी अर्जुन को सौंपी.
यज्ञ के बाद अश्व को छोड़ा गया. वह अश्व जिस राज्य में भी जाता, वह राज्य सहर्ष पांडवों के प्रति समर्पित हो जाता. उनका कर स्वीकार कर लेता या मित्रता का हाथ बढ़ाता. जिन राज्यों ने मित्रता नहीं की, उनसे अर्जुन ने युद्ध किया. यह क्रम चल ही रहा था कि अश्व मणिपुर राज्य पहुंचा. जहां का राजा था बभ्रुवाहन. बभ्रुवाहन अपने पिता से और अर्जुन अपने पुत्र से परिचित नहीं थे.
बभ्रुवाहन ने अश्व को देखकर पांडवों से मित्रता अस्वीकार कर दी. कहा जाता है कि ऐसा करने के लिए उलूपी ने ही बभ्रुवाहन को पाठ पढ़ाया था. उलूपी ने यह क्यों किया इसका राज आगे खुलेगा.
बहरहाल बभ्रुवाहन के प्रस्ताव अस्वीकार करने के बदल अर्जुन ने उसे युद्ध की चुनौती दी. अब जंग के मैदान में एक दूसरे से अंजान पिता और पुत्र आमने सामने थे. युद्ध आरंभ हुआ और कुछ ही क्षणों बाद बभ्रुवाहन ने एक तीर अर्जुन के सीने पर चलाया, जिसके प्रभाव से अर्जुन तत्काल धरती पर गिर गए. वे मरणासन्न थे.
उलूपी ने अर्जुन को दिया जीवनदान
उलूपी दूर से यह पूरा घटनाक्रम देख रही थी. जब चित्रगंदा को खबर हुई तो वे तत्काल युद्धभूमि पर पहुंचीं. उन्होंने बभ्रुवाहन को बताया कि जिसकी तुमने हत्या की है, वे तुम्हारे पिता थे. बभ्रुवाहन ने कहा कि यह अपराध मुझसे अंजाने में हुआ है, पर यह मैंने माता उलूपी के कहने पर किया. चित्रगंदा उलूपी के इस व्यवहार को समझ पाती इसके पहले उसने बभ्रुवाहन को एक मणि दी और कहा कि मेरे मंत्रोच्चार पूरे होने पर यह मणि अर्जुन के सीने पर रख देना.
बभ्रुवाहन ने ऐसा ही किया और अर्जुन तत्काल जीवित हो गए. चित्रंगदा ने बभ्रुवाहन को उसके पिता से मिलवाया. अर्जुन अपने पुत्र को देखकर खुश थे, पर उलूपी के कृत्य से नाराज. सभी लोग उलूपी से कारण जानना चाहते थे.
तब उसने बताया कि महाभारत में अर्जुन ने पितामह भीष्म की छल से हत्या की थी, जबकि पूरे युद्ध में उन्होंने पांडवों पर एक भी वार नहीं किया था. इस बात से उनके सभी वसु भाई नाराज थे. महाभारत के बाद वसु गंगा तट पर जमा हुए और उन्होंने आपको श्रॉप देने का मन बनाया. यह बात मैंने सुन ली और तत्काल अपने पिता को बताई.
मेरे पिता ने वसुओं से प्रार्थना की कि वे ऐसा न करें. तब वसुओं ने कहा कि अर्जुन की मृत्यु उसी के पुत्र के हाथों होगी. उसका एक बार मरना निश्चित है. अत: मैंने एक युक्ति सोची. जिसके अनुसार मैंने ही अपनी माया से बभ्रुवाहन को आपका वध करने के लिए राजी किया और अब तत्काल आपको जीवनदान दिया है.
यह पूरा वाक्या जानकर अर्जुन को अपनी गलती का एहसास हुआ. उन्होंने उलूपी से क्षमा मांगी. अर्जुन ने कहा कि तुम्हारे पुत्र ने पांडवों के लिए अपना जीवन त्याग दिया और तुमने मुझे जीवन दान दिया. इस प्रकार पूरा पांडव वंश तुम्हारा कृतज्ञ होगा.
बहरहाल अर्जुन के महल में उनकी दो पत्नियों को ही स्थान मिला था, पर उलूपी का अपने पति के प्रति कर्तव्य किसी महान कर्म से कम नहीं है.
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