शिवाजी (1630-1680 ई.) भारत के एक महान राजा एवं रणनीतिकार थे ,मुग़ल आक्रांता शासकों द्वारा हिंदू समाज पर किए जा रहे अत्याचारों ने शिवा के बाल मन को मात्र आहत ही नहीं किया अपितु विश्व कल्याणकारी हिंदवी स्वराज्य का अंकुरण पैदा किया जो सतत विकसित होकर वट वृक्ष बना , और 1645 में मात्र 15 वर्षायु की बाल्यावस्था में ही हिन्दवी स्वराज की नींव रख दी गई । उन्होंने कई वर्षों अत्याचारी औरंगज़ेब के मुगलसाम्राज्य से संघर्ष किया। 6 जून 1674 में जब रायगढ़ में उनका राज्यभिषेक हुआ और वह "छत्रपति" बने ,तब हिंदू समाज ने स्वयं को सुरक्षित व गौरवान्वित अनुभव किया था ।
इसके साथ ही भारत की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण ,संवर्धन व स्वतंत्रता प्राप्ति आंदोलन के संचालन को नई शक्ति मिली । शिवनेरी क़िले में -19 फ़रवरी 1630 में जन्मे शिवाजी महाराज अन्य राजाओं से भिन्न -बुद्धिमान , पराक्रमी सुदूरदृष्टि के स्वामी और दार्शनिक जीवन वाले राजा थे ।
शिवाजी ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों (अष्ट प्रधान ,दार्शनिक ) की सहायता से एक सुयोग्य एवं प्रगतिशील ,सर्वस्पर्शी एवम् कल्याणकारी प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किये तथा छापामार युद्ध (Gorilla War) की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की और इस छापामार युद्ध कला में महारथ प्राप्त कर ली थी ।
उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया।
छापामार युद्ध की प्रथम और मुख्य शुरुआत शिवाजी ने ही की थी। क्योंकि उनके पास साधन बहुत कम थे और शत्रु बहुत शक्तिशाली था। यहां तक कि वीर शिवाजी के पिताजी भी बीजापुर के सुल्तान के यहां दरबारी थे। शिवाजी ने उसी बीजापुर के सुल्तान के अन्याय व अत्याचार के विरुद्ध जीत के लिए छापामार युद्द का आसरा लिया। बाद तक भी मराठाओं की शक्ति वो छापामार युद्ध शैली ही थी।
मराठवाड़ा के पथरीले रास्तों पर ज्यादतर मझोले कद के मराठा पथरीले रास्तों पर टट्टुओं सहारे चढ़ जाते थे। खाने के किया एक सेर चने और पाव गुड़ रखते थे।
कुशल संगठक और बुद्धि कौशल से चरित्रवान ,राष्ट्र भक्त लोगों की फ़ौज तैयार की जिनमें सभी प्रत्येक गुणगान ,योग्य सिद्धहस्त थे ।
16 वर्ष की अल्पायु में ही तोरण का क़िला जीतकर ,हिन्दवी स्वराज्य लक्ष्य उद्देश्य के प्रति सभी हिंदू समाज को विश्वास दिला कर आश्वस्त कर दिया
था ।
उनके जीवन से प्रेरणा में—संगठन के साथ संकल्प से लेकर सिद्धि तक समाज कार्य करने की प्रेरणा ,बड़ी सोच , दूरदृष्टि ,अनुशासन,पूर्व योजना पूर्ण योजना , संयमशीलता और अनुशासन इतना कठोर कि-न्याय करते समय रिश्तेदार,संबंधी व अपने पराये की भावना से ऊपर -शासन में सर्वप्रिय न्याय ही प्राथमिक स्थान पर अवश्यम्भावी होता था ।
यदि उनके चरित्र में कुछ भी संशय होता तो -मुग़ल सल्तनत के अनेकों बार दिये गये प्रलोभन को समझौता कर लेते और पुरुषार्थी, पराक्रमी और कर्तव्यनिष्ठ , संघर्षरत कठिन जीवन छोड़कर मौज मस्ती का जीवन जीना कैसे अच्छा नहीं लगता है लेकिन ध्येय लक्ष्य अत्याचार व आतंकी मुग़ल शासन से हिंदुस्तान को हिन्दवी स्वराज्य देना था जिस कारण से छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके किसी भी सैनिक तक को कभी भी अनेकानेक प्रलोभन देने के उपरान्त पथभ्रष्ट /ख़रीद नहीं कर सका ।
इसी कारण और उनके दूरदृष्टा जीवन शैली का ही सुपरिणाम था कि अफ़ज़ल ख़ान जैसे विशालकाय शरीर वाले ख़ूँख़ार मुग़ली सेनापति की कुटिल चाल को भी विफल कर उसको भी समाप्त कर दिया गया था।
उनकी कार्यशैली में सबसे भिन्नता-
सूझबूझ के साथ जोखिम भरे जीवन में अपने को अग्रसर रखना उनकी अपनी कार्य पद्धति ।
उनका उद्देश्य -स्वजनों को स्वराज्य की अनुभूति कराना ,इसी के लिए उन्होंने प्रशासन में -अष्ट प्रधान मण्डल की स्थापना की । *रयत* उपाधि धारण करने वाले -प्रथम राजा ,यानि जनता के राजा थे।
राज्य व्यवस्था -लोगों के लिए लोगों के द्वारा ,जनता का धन -जन कार्य पर ही खर्च हो , अतः राजकोष के स्थान पर ट्रस्ट की शुरुआत की गई ।
3 अप्रैल 1680 को शिवाजी महाराज इहलौकिक यात्रा पूर्ण कर बैकुण्ठ लोक गमन किया ।
छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके बाद के मराठा शासकों ने कैसे संघर्षरत रहते हुए भी हिन्दवी स्वराज्य (विश्व कल्याणी संस्कृति) के परचम को अटक से कटक तथा से तंजावुर तक लहराकर समस्त मानवीय मूल्यों का स्थापन किया ,हम कल्पना करें यदि शिवाजी न होते तो —-?
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